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(१४) दिया ? इसका दोपी ज्ञानदाता अर्थात् ईश्वर है। यदि और चीज़ोंसे ऐमा हुआ, तो वे चीजें भी ईश्वरने बनाई हैं, अतएव इस दशामें भी ईश्वर ही दोषी ठहरता है । इससे भी जाहिर है कि ईश्वरने जगत्को नहीं बनाया।
यदि यह कहा जाय कि जीव प्रकृति आदि हैं, ईश्वरने इनको नहीं बनाया, कितु कर्मानुमार जीवको अच्छा बुरा शरीर दिया और उमको सुख दुःख पहुंचाया, तो इससे स्वयं सिद्ध हे कि सृष्टि जो जीव, प्रकृति इन दो । चीजोका ही समुदाय है अनादिसे है, इसको किसी ईश्वरने नही बनाया । यदि यह कहा जाय कि प्रलयके बाद जीव प्रकृतिको शकल दी, तो फिर वही प्रश्न उठता है कि शकल देनेसे पहिले क्या दशा थी, वह शकल किस तरह दी और कैसे दी 2
___यह भी जाने दीजिए, अब फल देनेको भी देखिये । यदि यह कहा जावं कि ईश्वर कर्मानुसार जीवोंको फल देता है तो यह बताया कि फट ठीक कर्मानुसार ही देता है या दया करके अथवा ऋध करके उससे कम नियादह भी कर सकता है और करता है। यदि कम या जियादह न करके ठीक कर्मानु पार ही देता है, तो वह कर्मक आधीन हुआ और उससे स्तुति, विनती, प्रार्थना वगैरह करना सब व्यर्थ ठहग । कारण कि ईश्वर तो वैता ही फल देगा,