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(१६) प्रकारका कोई दण्ड नहीं मिलता, परंतु ईश्वरका काम करनेवालेको मिलता है । इससे भी सिद्ध हुआ कि जगत्कर्ता और कर्मफलढाता ईश्वर नहीं है।
इसे भी जाने दीजिये। जगत्कर्ता माननेवाले महाशय ईश्वरको “सर्वव्यापक मानते हैं अर्थात् ईश्वर आकाशकी तरह सब जगह पर है। इस कथनमें पूर्वापर विरोध है । यदि ईश्वर सर्वव्यापक है तो वह जगत्कर्ता कभी नहीं हो सकता। क्योंकि विना हिलन-चलन किये कोई काम नही हो सकता और जो सर्वव्यापी होता है वह हिलनचलन कर नहीं सकता । जैसे आकाश । कारण कि हिलनचलनके लिये स्थानकी जरूरत होती है और सर्वव्यापक होनेसे स्थान कही रहता नहीं। या तो ईश्वरको कर्ता मानो और उसके सर्वव्यापकपनेसे इनकार करो, या ईश्वरको सर्वव्यापक मानो और जगत्कर्ता माननेको छोडो । दोनों एक दूसरेस विरोधी बातें ईश्वरमे नही रह सकतीं । इससे भी सिद्ध हुआ कि ईश्वर जगत्कर्ता नहीं है ।
इसके अतिरिक्त जब ईश्वरको जगत्कर्ता और सर्वव्पायी दोनों मानते हो, तो दान पुण्य करनेवाला भी ईश्वर हुआ और लेनेवाला भी ईश्वर भी रहा । इस तरह लेने देनेमें भेद न हुआ । ईश्वरने अपना दान आप ले लिया । इससे तो दान वगैरह करना ही व्यर्थ . आ। ऐसे ही मारनेवाला मी ईश्वर है । और मरनेवाला मी ईश्वर