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अनानुपूर्वी ।
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|३/१/२|४|५। (७) सच्चे गुरु वे हैं जो ( ३ | २ | १४
| १२५ ४ | पांच महाव्रत धारक हो ५ ३ २ १५ ३ १ ४२५ सुमति समित ३ गुप्ति, गुप्त, ३।१४ | ५ | २! पंचाचार पालन समथ. पांच
|३२५|१४| २१ | ५ | २४] इन्द्रिय संवरक चतर्विध क४ | २|
| ३ | २५|४|१| निग्रंथ गुरु हैं । ऐसे साधु इच्छा का निरोध कर संसार दशा से विरक्त रहते हैं
और वे सम्यक्त्व सहित शुद्ध चारित्र ( संयम ) पालते हुए उच्चगति को प्राप्त होते हैं ऐसे मुनि को शुद्ध भाव से बदन वैयावच तथा भक्ति करना चाहिए ।