________________
प्रार्थना। विद्वज्जनों से सविनय यह प्रार्थना है कि मैंने इस पुस्तक में जैसा कि देखा, सुना पढा उसी अनुसार संग्रह किया। अतः यदि इसमें कोई काना, मात्रा, छन्दोभंग एवं ह्रस्व दीर्घादि जो कुछ अशुद्धियां रह गई हों उनको श्राप सज्जन कृपाकर स्वयं शुद्ध कर लेवें तथा उन अशुद्धियों से मुझे भी सूचित कर कृतार्थ करें, तदुपरान्त यह भी विनय है कि इस पुस्तक को खुले मुख तथा दीपक के सम्मुख नहीं पढें क्योंकि ऐसा करना जैनधर्म से विरुद्ध है ।
विनीत रतनलाल महता.