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अनानुपूर्वी ।
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१/४/२ ३ ५। (२) जिनेश्वर देवकी भक्ति |१||२|३|४| |१४ २५ ३ | गुरू की सेवा, प्राणीपर दया, । | २४
३२५ सुपात्रदान, गुणी पर प्रीति |१| ४ | ३ | ५ | २| और शास्त्र श्रवण यह छः । १५३४ २
३] बातें मनुष्य जन्म रूप वृक्ष | १ ४/५। ३२ का फल है। इसवास्ते मनुष्य || २ | 8 | २ । को चाहिये कि ऐसा उत्तम योग पाकर अपना समय वृथा न गुमावें । (३) धर्म अर्थ तथा काम इन तीन वर्गों के साधन बिना मनुष्य का श्रायुष्य पशु के तुन्य निष्फल है । इन तीनों वर्गों में धर्म को श्रेष्ठ कहा है इसके बिना अर्थ तथा काम नहीं बन सकता । चौथा मोक्ष वर्ग है पुरुषार्थ से साधा जाता है।
अनानु पूर्यो।