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भूमिका • xix
अप्रतिम प्रज्ञा के धनी प्रोफेसर भूमित्र देव, पूर्व कुलपति, रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली एवं गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर की असीम अनुकम्पा है कि इस ग्रन्थ का आमुख लिखकर इस कृतित्व को गौरवान्वित किया है । यह उन्हीं का अमूल्य परामर्श है जो विशिष्ट शब्दों की पारिभाषित शब्दावली के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उनके लिए आभार के सभी शब्द अपर्याप्त हैं।
प्रोफेसर बी.एन.एस.यादव, इलाहाबाद विश्वविद्यालय एवं प्रोफेसर लल्लनजी गोपाल, बनारस विश्वविद्यालय ने शोध प्रबन्ध का मूल्यांकन करते समय इसे गुणवत्तापूर्ण और शोध छात्रों के निमित्त उपयोगी पाया था। मैं इन दोनों विद्वज्जनों को हार्दिक आभार व्यक्त करती
हूं।
प्रोफेसर मारुति नन्दन तिवारी, विभागध्यक्ष, 'कला - इतिहास' बनारस विश्वविद्यालय ने अमूल्य सम्मति देकर मेरा उत्साह और पुस्तक का जो सम्मान बढ़ाया है उसके लिए मैं कृतज्ञता ज्ञापित करती हूं।
प्रोफेसर उदय प्रकाश अरोड़ा, विभागाध्यक्ष, प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति विभाग, रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली के प्रति मैं आभार व्यक्त करती हूं जो मुझे सदैव निरंतर लेखन और रचनाधर्मिता के लिए प्रेरित करते रहते हैं । मेरे ही विभाग के प्रोफेसर आर.पी. यादव, डा. अतुल कुमार सिन्हा, डा. अभय कुमार सिंह और डा. विजय बहादुर यादव, जिन्होंने इस ग्रन्थ के प्रकाशन में सहयोग किया है, को धन्यवाद देना अपना कर्तव्य मानती
हूं।
यहां मेरे परिवारीजनों - पितृव्य श्री दिनेश चन्द्र चतुर्वेदी, अग्रज श्री राजेश नाथ चतुर्वेदी, अनुजद्वय श्री भुवनेश और मुकेश के प्रति, लेखनेतर सहायता के लिए हृदयस्थ आभारी हूं। अपने पति डा. रुद्रदत्त चतुर्वेदी का मैं उपकार मानती हूं जिन्होंने मुझे गृहस्थ जीवन से पर्याप्त अवकाश प्रदान किया और मैं इस कार्य को पूर्ण कर सकी। अपने शिक्षक प्रोफेसर सुरेन्द्र नाथ दुबे, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर का मैं आभार व्यक्त करती हूं जो इस कार्य में सहायक रहे।
रेखा चतुर्वेदी