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भूमिका
आगम साहित्य विपुल, विशाल और विराट है, फिर भी उसका सर्वांगीण परिचय प्रस्तुति की अपेक्षा करता है। इस अपेक्षा से मूल आगमों का अनुसन्धान क्षेत्र व्यापक और विस्तृत है। आगमों तथा उनके परिवार में धर्म, दर्शन, संस्कृति, तत्वमीमांसा, गणित, ज्योतिष, नीतिशास्त्र,खगोल, भूगोल और इतिहास के तत्व निहित हैं, किन्तु आवश्यकता उन्हें प्रकाश में लाने और उनकी व्याख्या करने की है। यथपि जैनदर्शन, जैन नीतिशास्त्र, जैन संघजीवन, जैन साहित्य का इतिहास इत्यादि विषयों पर स्वतन्त्र रूप से ग्रन्थ लिखे जा चुके हैं, किन्तु अपेक्षा किसी ऐसे संकलन की है जिसमें संस्कृति के इन विविध आयामों का मनन और मन्थन समग्र रूप में आधिकारिक एवं प्रामाणिक रूप से हो। डा. जगदीशचन्द जैन ने लाइफ इन एंशियंट इण्डिया ऐज डिपिक्टेड इन अर्ली जैन कैनन्स, (बंबई, 1947) तथा आगम साहित्य में भारतीय समाज, चौखम्बा विद्या भवन, (वाराणसी, 1965) नामक दो ग्रन्थ लिखकर इस दिशा में प्रयास किया किन्तु उनका कृतित्व प्रमुख रूप से व्याख्या साहित्य पर आधारित है, मूल साहित्य का उद्धरण उन्होंने यदा-कदा ही दिया है। प्रस्तुत शोध प्रबन्ध इस अपेक्षा पूर्ति की दिशा में मेरा एक अल्प प्रयास मात्र है। अपने इस प्रयास में मैंने आगम साहित्य के ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक विवेचन को विषय बनाया है जिसमें प्रमुख सन्दर्भ आचारांगसूत्र, सूत्रकृतांग एवं उत्तराध्ययनसूत्र के हैं।
प्रथम अध्याय में जैन साहित्य का ऐतिहासिक विवेचन किया गया है। जैन साहित्य वस्तुत: इतस्तत: बिखरा हुआ है। जैन धर्म के संक्रमण कालों से विचरण के कारण इसके साहित्य संरक्षण में अनेक बाधाएं आती रहीं तथा मूल साहित्य के चौदह पूर्वो में से अनेक पूर्व तथा बारहवां अंग दृष्टिवाद तथा कुछ अन्य अंश भी लुप्त हो गए। इसी प्रकार अनेक अंशों के प्रक्षिप्तिकरण के कारण जैन आगम साहित्य की मौलिकता और प्रामाणिकता शोध का विषय बन गई। आगमों की तिथि चर्चा, संख्या और विभाजन में मनीषियों की दृष्टि अनेकान्ती है। आगमों की वाचनाओं के विषय में भी मान्यता भेद है। मेरा प्रयास इन विविध मान्यताओं का समीक्षात्मक अध्ययन का है।
द्वितीय अध्याय में धर्म, सिद्धान्त और व्यवहार की चर्चा की गई है। यह अध्ययन धार्मिक व्यवस्था तथा धर्मदर्शन से सम्बन्धित है। तत्कालीन समाज की मानसिकता, श्रमण