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विषय
विदेह के कच्छा आदि प्रत्येक क्षेत्र में बहनेवाली गंगा, सिन्धु आदि नदियोंका वर्णन वृषभाचल तथा देवारण्य और भूतारण्य वनोंका वर्णन
जम्बूद्वीप मेरु पर्वत तथा जगतीका वर्णन देवारण्य तथा उसके प्रासाद आदिका वर्णन संख्यात द्वीपों के अनन्तर द्वितीय जम्बूद्वीपका वर्णन
धातकीखण्ड द्वीपका वर्णन
कालदधिका वर्णन
पुष्करद्वीपका वर्णन
लवण समुद्रके विस्तार, पाताल विवर समीपवर्ती पर्वत, गोतम देव, उनके अन्य अन्तद्वीप, लवणसमुद्रकी जगती तथा उसके विस्तारका वर्णन
मनुष्यक्षेत्र और उसका विस्तार मानुषोत्तर पर्वतका वर्णन आदिके सोलह द्वीपसमुद्रोंके नाम, समुद्रोंके जलका स्वाद, समुद्रोंमें सजीवोंका अस्तित्व कहाँ है, कहाँ नहीं है ? तथा द्वीपसमुद्रोंके अधिष्ठाता देवोंका वर्णन
आठवें नन्दीश्वर द्वीपका वर्णन
अरुणद्वीप तथा अरुणसागर में अन्धकारका वर्णन
विषय सूची
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कुण्डलवरद्वीप और कुण्डलगिरि तथा रुचकवर द्वीप और रुचकगिरिका वर्णन स्वयंभूरमण द्वीप के मध्य में स्थित स्वयंप्रभपर्वतका वर्णन, स्वयंप्रभपर्वतके आगे तियंचोंका वर्णन, मध्यलोकके वर्णनका समारोप
८८
८८-८९
८९-९६
९६-९७
९७-९९
श्रेणीबद्ध, प्रकीर्णक तथा संख्यात असंख्यात योजन विस्तारवाले विमानोंका वर्णन १२५-१२६ पाँच पैंतला और चार लखूरोंका वर्णन १२६-१२७ श्रेणीबद्ध विमानोंका अवस्थानक्षेत्र, उनके
शिलापट्टोंकी मोटाई तथा भवनोंकी गहराई आदिका वर्णन
१२७-१२८ कौन जीव कहाँ तक उत्पन्न होते हैं, १२८ देवोंमें लेश्याएँ देवों के अवधिज्ञानका विषय १०४-१०८ क्षेत्र, देवोंकी ऊँचाई, प्रविचार और देवियों के १०८-१०९ उत्पत्ति स्थानका वर्णन
९१-१०४
१२८-१२९
१०९-११० ११० ११०-११२
सिद्धलोकका वर्णन तथा ऊर्ध्वलोकके वर्णनका समारोप
११२-११४
११४-११६
११६-११७
११७-११९
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षष्ठ स
पृथिवीतलसे सात सौ नब्बे योजनकी ऊँचाईसे लेकर नौ सो योजनकी ऊंचाई तक स्थित ज्योतिष पटल ग्रहोंका स्थिति-क्रम, आयु, विस्तार, रूप, रंग तथा अढ़ाई द्वीपके सूर्यचन्द्रमा आदिका वर्णन १२१-१२३ मेरु पर्वतकी चूलिकाके ऊपर ऊर्ध्वलोक के
विषय
सौधर्मादि १६ स्वर्गौके आठ युगल, नौ ग्रैवेयक, नौ अनुदिश और पाँच अनुत्तर विमानोंका स्थिति-क्रम, तथा त्रेशठ पटलोंके इन्द्रक विमानोंके नामोंका वर्णन
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१२३-१२५
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व्यवहार पल्य, उद्धार पल्य, अद्धा पल्य तथा उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीके छह-छह कालों का वर्णन
१२९-१३१
सप्तम सर्ग
काल- द्रव्यका स्वरूप तथा उसका अस्तित्व, व्यवहारकाल के समय, आवली उच्छ्वास, और प्राण आदि भेदों-प्रभेदों का वर्णन १३२-१३४ परमाणु तथा अवसंज्ञ, त्रुटिरेणु, त्रसरेणु और रथरेणु आदिका वर्णन
१३४-१३५
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१३५-१३७
अवसर्पिणीके प्रथम कालके समय भरतक्षेत्र - की उत्तम भोगभूमि तथा दस प्रकार के कल्पवृक्षों का निरूपण
१४०-१४१
१३७१४० भोगभूमिमें उत्पत्ति के कारणों का वर्णन करते हुए पात्र - कुपात्र-अपात्रका वर्णन तृतीय कालके अन्तिम भागमें प्रतिश्रुति आदि चौदह कुलकरोंकी उत्पत्ति और उनके कार्य, ऊँचाई, रूप-रंग और दण्ड व्यवस्था आदिका वर्णन
अष्टम सर्ग अन्तिम कुलकर नाभिराजके इक्यासी खण्ड के सर्वतोभद्र भवनका वर्णन
१४१-१४५
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