________________ 11 सकता है। आत्मशुद्धि कठिन अवश्य है पर असंभव नहीं। इसके लिये परमात्म दर्शन और परमात्म वाणी का श्रवण हमारे लिये सफल और सर्वोत्कृष्ट साधन हो सकते हैं। ___ सांपों से भरे बावना चंदन में कोई व्यक्ति जाना चाहे तो उसे नि:संदेह खतरा रहेगा। पर वह यदि मयूर की व्यवस्था करके जाये तो वह निर्भय होकर भ्रमण कर सकेगा और इच्छित चंदन प्राप्त कर सकेगा। ठीक इसी प्रकार हमारा जीवन दुर्गुण रूपी अगणित सांपों का पडाव है। अपने मिथ्यात्व और अविवेक भरे आचरण से हमने उन्हें सदा पुष्ट किया है। परमात्म वाणी रूप मयूर यदि साथ हो तो स्वतः सारे दुर्गुण मैदान छोड़ जायेंगे। ज्ञानसार एक ऐसा ही अनमोल ग्रन्थ है जो हमें आत्म-गुणों की गहरी समझ देता है। ज्ञानसार की महत्ता दर्शन, श्रवण, वाचन, चिंतन, मनन और निदिध्यासन में एक क्रम है। ये क्रमश: गहरे होते चले जाते हैं। वर्तमान के उथले युग में व्यक्ति दर्शन, श्रवण और वाचन तक सीमित हो गया है। उसमें वैपरीत्य दिशि के आक्रमण से सात्विकता और मौलिक ओजस्विता का अभाव हो गया है। दर्शन अथवा श्रवण किंवा वाचन में यदि सत्त्व की उपस्थिति हो तो स्वत: अगली चिंतन और मनन की पगडंडियों पर व्यक्ति अग्रसर हो जाता है। . भटके वातावरण में दर्शन (देखना) ने दृष्टि को नहीं विकृति को जन्म दिया है ! श्रवण ने जीवन कला को समझाने का नहीं, वृत्तियों को भडकाने का काम किया है ! क्योंकि चिंतन-मनन-निदिध्यासन का कोई आधार नहीं था ! व्यक्ति दिन-रात काषायिक और कामुक वृत्तियों के उत्तेजन में अपनी जिंदगी हार रहा है। ऐसे उत्तप्त और संतप्त जीवन भू-भाग पर अमृत वर्षा करते हैं महापुरुष ! जो ऐसे साहित्य का सर्जन करते हैं जो जीवन को जीवन-रस से सिंचित करता है।