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प्रवचन-७४ कैसा होना? दूसरों के लिए या अपने लिए भी? : ___ सभा में से : संघ के साथ अच्छा व्यवहार रखना चाहिए, परन्तु संघ कैसा होना चाहिए? 'नन्दीसूत्र' में जैसा संघ का वर्णन आता है, वैसा होना चाहिए न?
महाराजश्री : यदि संघ नन्दीसूत्र में जैसा बताया गया है वैसा होना चाहिए, ऐसा मानते हो, तो साधु आचारांग सूत्र' में जैसा बताया है वैसा होना चाहिए न? और श्रावक 'उपासक दशा' में जैसा बताया है वैसा होना चाहिए न? संघ कैसा होना चाहिए, यह सोचते हो; परन्तु हमें कैसा होना चाहिए, यह कभी सोचते हो? संघ क्या है? साधु-साध्वी, श्रावक और श्राविका का समूह ही संघ है। साधु-साध्वी एवं श्रावक-श्राविका जैसे होंगे, वैसा ही संघ होगा। ___ संघ के साथ दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए। कभी कोई बात संघ की, आपको पसंद न भी हो, तो भी संघ का अपमान नहीं करना चाहिए। तुच्छ और कटु शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कब कौन-सा हित महत्त्वपूर्ण? :
दुर्व्यवहार करनेवाले लोग अपना ही अहित करते हैं। संघ और समाज के साथ वैर बाँधनेवाले तो तत्काल दुःखी होते हैं। इसलिए जब परिवार का हित सामने आये तब व्यक्तिगत हित का विचार छोड़ दो। सामाजिक हित का प्रसंग आये तब पारिवारिक हित को गौण कर दो। जब राष्ट्रीय हित का अवसर हो तब सामाजिक हित को महत्त्व मत दो। राष्ट्रीय हित से भी बढ़कर होता है समग्र जीवसृष्टि का हित। समग्र जीवसृष्टि के कल्याण का लक्ष्य बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
सामान्य...क्षुद्र मनुष्य अपना ही हित सोचता है। वह भी आत्महित नहीं, भौतिक सुखों का ही विचार करता है। जब कष्ट आता है, आपत्ति आती है...तब वो अपना ही विचार करता है। संभव है कि परिवार को भी भूल जायँ! ऐसा व्यक्ति महान् धर्मसाधना करने योग्य नहीं होता है। कष्ट और आपत्ति में भी जो अपना धैर्य बनाये रखता है, वह मनुष्य उचित लोकयात्रा कर सकता है। अधीर और कायर व्यक्ति लोकयात्रा में सफल नहीं होता है |
देद श्रावक (महामंत्री पेथड़शाह के पिता) धीर और वीर पुरुष थे। उनकी लोकयात्रा उचित ही थी, परन्तु वे लोगों के मन को समझ नहीं पाये! व्यवहार अच्छा था लोगों के साथ, परन्तु लोकमानस विचित्र होता है न! देद श्रावक का वैभव, कुछ लोगों के लिए ईर्ष्या का कारण बन गया। बात राजा के पास
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