________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन-७४
१४ धर्म को प्रमुखता दो :
इन सभी लोगों के मानसिक विचारों से आपको परिचित रहना चाहिए। उनके कौन-कौन-से दृढ़ आग्रह हैं, दृढ़ मान्यताएँ हैं, दृढ़ धारणाएँ हैं...वे जान लेनी चाहिए। और, जो आग्रह, जो मान्यता, जो धारणा धर्मविरुद्ध न हो यानी गृहस्थधर्म से विपरीत न हो, उसका विरोध नहीं करना चाहिए । 'यह मान्यता धर्मविरुद्ध है अथवा धर्मविरुद्ध नहीं है, इस बात का निर्णय करने की आपकी क्षमता होनी चाहिए। कुछ सरल जीव तो मान लेते हैं कि उनकी ऐसी क्षमता नहीं है। मंदिर-उपाश्रय में आनेवाले कुछ लोग ऐसे होते हैं कि जिनकी ऐसी क्षमता नहीं होती है, फिर भी वे मानते हैं कि उनकी वैसी क्षमता है। ऐसे लोग जो कार्य धर्मविरुद्ध नहीं होता है, उसको धर्मविरुद्ध कह देते हैं और जो कार्य धर्मविरुद्ध होता है, उस कार्य को धर्मसम्मत कह देते हैं। __ जैसे, कार्य 'धर्मविरुद्ध' नहीं होना चाहिए, वैसी जिनाज्ञा है, वैसे कार्य 'लोकविरुद्ध' नहीं होना चाहिए, यह भी जिनाज्ञा है। लोगों के विचारों का ऐसा तिरस्कार नहीं करना चाहिए कि जिससे लोगों का मानस आपके प्रति तिरस्कारयुक्त हो जाय। आपका अनादर करें, आपके अच्छे कार्यों का भी अनादर करें।
अल्पज्ञ, जड़ बुद्धिवाले लोग, जो कि धर्मस्थानों में आते-जाते हैं, बात-बात में धर्म की दुहाई गाते रहते हैं, और लोकविरुद्ध कार्य करते रहते हैं, ऐसे ही लोगों ने जनमानस पर धर्म की विकृत छवि पैदा की है। धर्म के पवित्र आचारों की निन्दा करवाई है। वे लोग स्वयं तो निन्दित होते ही हैं, सदाचारों की भी निन्दा करवाते हैं। परिवार का तिरस्कार मत करो : __ पहले, परिवार के लोगों की बात कर लें। परिवार में आपके माता-पिता हैं, भाई हैं, बहनें हैं, पत्नी है, लड़के-लड़कियाँ हैं... इन सबके विचारों से, भावनाओं से आपको परिचित रहना चाहिए। घर में सभी लोग, आपकी विचारधारा में बहनेवाले नहीं भी हो सकते। आप यदि ऐसा आग्रह रखते हैं कि 'घर के सभी लोग मेरा कहा मानें, मैं कहूँ वैसा करें...', तो क्या संभवित है? आपको यदि परिवार का स्नेह अर्जित करना है, तो उन लोगों की बातों को बार-बार ठुकराना बंद करें, उन लोगों का तिरस्कार करना बंद करें।
For Private And Personal Use Only