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प्रवचन-७४ लोकयात्रा में आपने थोड़ी-सी भी गफलत कर दी, भूल कर दी तो तत्काल चमत्कार देखने को मिलेगा! लोकयात्रा बड़ी सावधानी से करने की होती है।
तीर्थयात्रा और रथयात्रा अथवा पदयात्रा तो आप अपनी इच्छा से कर सकते हैं, आपकी इच्छा पर निर्भर होता है, परन्तु लोकयात्रा तो करनी ही पड़ती है। यदि आपको लोकयात्रा करनी आ गई तो आपको लाभ ही लाभ है! यह सामान्य धर्म है परन्तु जीवन में इसका महत्त्व सामान्य नहीं है, असाधारण है!
लोकयात्रा में मनुष्य को सतर्क और जाग्रत रहना पड़ता है। बुद्धिमत्ता चाहिए | बुद्धिहीन मनुष्य लोकयात्रा में निष्फल जाता है। चूंकि इस यात्रा में आपको दूसरे लोगों के विचारों को जानने पड़ते हैं। लोगों की धारणाओं को जानना पड़ता है।
जिस संघ में, जिस समाज में, जिस नगर में आप रहते हैं, वहाँ आपका गौरव और आपके सदाचारों का गौरव सुरक्षित रखना चाहिए। गृहस्थ के जीवन में जैसे मकान, वस्त्र, भोजन, परिवार, मित्र वगैरह आवश्यक होते हैं वैसे अपना गौरव भी आवश्यक होता है। कोई आपका अनादर न करे, कोई आपके सदाचारों की भर्त्सना न करे, वह बड़ी महत्त्व की बात है। इसलिए आपको, लोगों के विचारों से परिचित रहना चाहिए। आत्म-गौरव बनाये रखो : ___ जीवन-व्यवहार में गौरव बनाये रखना बहुत आवश्यक होता है। गौरव का अर्थ जानते हो क्या? गौरव का अर्थ केवल मान-सम्मान मत समझना! गौरव का अर्थ है मनुष्य के व्यक्तित्व की गरिमा । निराभिमानी मनुष्य के व्यक्तित्व की गरिमा से लोग काफी प्रभावित होते हैं। ___ मान लो कि आप बड़े धनवान् हो, आप बड़े सत्ताधीश हो...अथवा आप किसी बड़े ट्रस्ट के ट्रस्टी हो, आपका लोगों के साथ यदि नम्रतापूर्वक व्यवहार होगा, सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार होगा, लोगों को सहायक बनने का रवैया होगा, तो आपका गौरव बढ़ेगा। आपके धर्माचरण का भी गौरव बढ़ेगा।
लोगों के मुख्य चार विभाग कर सकते हैं : १. परिवार के लोग, २. संघ-समाज के लोग, ३. नगर के लोग, ४. प्रमुख लोग।
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