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प्रवचन- ७३
११
दूसरों की संपत्ति देखकर कभी भी ईर्ष्या मत करना । 'उनके पास लाखोंकरोड़ों रुपये हैं और मेरे पास कुछ नहीं ?' ऐसी हीन भावना से व्याकुलता बढ़ती है। संपत्ति पुण्य कर्म के उदय से ही मिलती है। बिना पुण्योदय, मानो कि किसी की संपत्ति छीन ली, तो भी वह संपत्ति आपके पास रहेगी नहीं। दूसरी बात, आप दूसरे को गिराने का कष्ट में डालने का प्रयत्न करेंगे, परन्तु यदि उसका प्रबल पुण्योदय होगा, तो आप उसको नहीं गिरा सकेंगे, कष्ट में नहीं डाल सकेंगे। आप पापकर्मों से अवश्य बँध जायेंगे।
राजा के पास :
राजा के भेजे हुए चार राजपुरुष देद वणिक के घर पर पहुँच गये । देद भोजन करने के लिए बैठनेवाला ही था, राजपुरुषों ने कहा : 'भोजन बाद में करना, अभी चलो राजमहल में। महाराजा ने शीघ्र आपको बुलाया है । '
बिना भोजन किये देद राजपुरुषों के साथ राजा के पास गया। राजा ने देद का कोई उचित सत्कार किये बिना ही, तुरन्त पूछा : 'देद, लोग कहते हैं कि तुझे जमीन में से गुप्त निधान प्राप्त हुआ है, क्या यह बात सच है ?' राजा के प्रश्न से देद उसी क्षण सारी परिस्थिति को समझ गया। देद ने बड़ी स्वस्थता से प्रत्युत्तर दिया :
‘महाराजा, मेरी आप से विनती है कि आप ऐसी सुनी हुई बात को सत्य नहीं मानें। आप सोचें कि मेरा ऐसा भाग्य कहाँ कि मुझे निधान प्राप्त हो ? इसलिए, हे स्वामिन्, लोगों की बात सच्ची नहीं है। किसी हितशत्रु ने ऐसी बात आपको कही लगती है ।'
राजा ने कहा : ‘देद, तू माया-कपट मत कर । माया छोड़कर, जो सच बात हो, वह कह दे। मैं वणिकों के चरित्र जानता हूँ...।'
देद अपने मन में सोचता है : 'अब मुझे इस राज्य में नहीं रहना चाहिए । शीघ्र ही इस राज्य का त्याग करके मैं यहाँ से चला जाऊँगा । उपद्रवग्रस्त देश का त्याग कर देना चाहिए । '
जो देश अच्छा न हो, जो समय अनुकूल न हो, उसका त्याग करना- यह २१वाँ सामान्य धर्म है। इस सामान्य धर्म का पालन करने से मनुष्य इहलौकिक एवं पारलौकिक उपद्रवों से बच सकता है ।
आज बस, इतना ही ।
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