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भजन संख्या
१०९. हे नर, भ्रमनींद क्यों न छांडत दुखदाई
११०. अरे जिया, जग धोखेकी टाटी १११. हम तो कबहूँ न हित उपजाये ११२. हम तो कबहुँ न निजगुन भाये ११३. हम तो कबहुँ न निज घर आये
११४. हे हितवांछक प्रानी रे, कर यह रीति सयानी
११५. विषयोंदा मद भानै, ऐसा है कोई छे
११६. कुमति कुनारि नहीं है भरी रे
११७. घड़ि-घड़ि पल-पल छिन छिन निशदिन
१९१८. जम आन अचानक दावैगा
११९. तू काहेको करत रति तनमें
९५०. निपट जयागा, में आया नहीं जाना
१२१. निजहितकारज करना भाई ! निजहित कारज करना
१२२. मनवचतन करि शुद्ध भजो जिन, दाव भला पाया १२३. मोहिड़ा रे जिय । हितकारी न सीख सम्हारै १२४. सौ सौ बार हटक नहिं मानी, नेक तोहि समझायो रे
परिशिष्ट
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