________________
जिनकी महिमा का वर्णन करने के लिए वृहस्पति भी समर्थ नहीं हैं। दौलतराम कहते हैं कि जैसे खरगोश सुमेरु पर्वत को धकेलने का प्रयास करे, उसी भाँति मैं अल्पमति उस महिमा का वर्णन किस प्रकार कर सकता हूँ अर्थात् समर्थ नहीं हूँ।
पद्यसद्य - मुक्ति स्थान, समवसरण; पद्यामुक्ति = मोक्ष-लक्ष्मी; सद्य - घर, शासन - उपदेश; पंचानन = सिंह, मतंग = हाथी; रुष-तुष = द्वेषराग।
दौलत भजन सौरभ
७९