Book Title: Daulat Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachandra Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 193
________________ (११५) विषयोंदा मद भान, ऐसा है कोई वे ॥टेक॥ विषय दुःख अर दुखफल तिनको, यौँ नित चित्त न ठानै ॥१॥ अनुपयोग उपयोग स्वरूपी, तनचेतनको मानै ॥२॥ वरनादिक सगादि भावते, भिन्न रूप तिन जानें ॥३॥ स्वपर जान रुषराग हान, निजमें निज परनति सानै॥४॥ अन्तर बाहरको परिग्रह तजि, 'दौल' वसै शिवधानै ॥५॥ विषयों का मद कैसा होता है ? अरे, ऐसा जाननेवाला कोई है ! विषय स्वयं दुख हैं और उनके फल भी दुखकारी हैं, जो उन विषयों का अपने चित्त में विचार भी नहीं करता (अर्थात् जिसकी दृष्टि आत्मीय सुख पर ही है) .. ऐसा (जाननेवाला) कोई है ! यह तन अनुपयोगी है, चेतन उपयोगस्वरूपी है। जो तन और चेतन के इस प्रकार के भेद को जानता है - ऐसा (जाननेवाला) कोई है ! जो जानता है कि वर्णादिक व रागादिक से वह भिन्न हैं - ऐसा (जाननेवाला) कोई है ! जो स्व और पर को भेदज्ञान से अलग अलग जानकर राग-द्वेष का नाश करता है और अपने आप में मगन हो जाता है, अर्थात् स्वरूप-चिंतन में लीन हो जाता है - ऐसा (जाननेवाला) कोई है ! दौलतराम कहते हैं कि जो ऐसा जाननेवाला है वह बाह्य और आन्तरिक दोनों प्रकार के सब परिग्रह को छोड़कर मोक्ष में निवास करता है अर्थात् परिग्रह का सांग त्याग ही मोक्ष है। दौलत भजन सौरभ १७१

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