Book Title: Daulat Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachandra Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 195
________________ (११७) घड़ि-घड़ि पल-पल छिन-छिन निशदिन, प्रभुजीका सुमिरन करले रे ॥ प्रभु सुमिरेते पाप कटत हैं, जनममरनदुख हरले रे॥१॥घड़ि.।। मनवचकाय लगाय चरन चित, ज्ञान हिये विच धर ले रे॥२॥घड़ि ।। 'दौलतराम' धर्मनौका चढ़ि, भवसागर ते तिर ले रे।। ३ ।। घड़ि.॥ हे मनुष्य ! प्रत्येक घड़ी, प्रत्येक पल और प्रतिक्षण अर्थात् निरंतर और नित्यप्रति तू प्रभु का स्मरण कर; उनके गुणों का चिंतवन कर । प्रभु के स्मरण से, उनके गुणों के स्मरण से पापों का नाश होता है, जन्ममरण के दु:ख दूर होते हैं। मन और वचन और कायसहित प्रभु के चरणों में चित्त लगाकर, ज्ञानस्वरूप को हृदय में धारण करो। दौलतराम कहते हैं कि धर्मरूपी नौका पर चढ़कर तृ इस भव-सागर, संसारसमुद्र के पार हो जा। दौलत भजन सौरभ १७३

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