Book Title: Daulat Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachandra Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 187
________________ 5 रहे हैं। कहने को तो कहते रहे हैं कि ये चेतन देह से भिन्न हैं, पर सदैव हृदय आचरण से देह पर ही ममत्व करते रहे हैं । से - अनादिकाल से हमारी यही भूल हो रही है, अब पछताने से क्या लाभ ! दौलतराम कहते हैं कि गुरु की वाणी सुनो और अब आगे भवभोगों में रत मत होओ। माचत - गर्व करना; लाह दौलत भजन सौरभ - लाभ; सुमन चाप कामदेव की आहट, धनुषः रजे = रचे । 1 - १६५

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