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काम - इच्छाएँ, धन और स्त्री इन हो की आशारूपी आग में अपने आपको नित्यप्रति जलाते रहे ।
यह आत्मा अचल है, स्थिर है, अनूप है, निराला है, शुद्ध चैतन्यस्वरूप है, यह सब सुखमय है- मुनिजन ऐसा ही गाते हैं। दौलतराम कहते हैं कि जो अपने गुणों में मगन होकर चैतन्यस्वरूप के आनंद का ध्यान करते हैं वे जीव सुखी होते हैं, सुख पाते हैं ।
गरन =
गलना; धरन = धारना ।
दौलत भजन सौरभ
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