Book Title: Daulat Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachandra Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

View full book text
Previous | Next

Page 189
________________ काम - इच्छाएँ, धन और स्त्री इन हो की आशारूपी आग में अपने आपको नित्यप्रति जलाते रहे । यह आत्मा अचल है, स्थिर है, अनूप है, निराला है, शुद्ध चैतन्यस्वरूप है, यह सब सुखमय है- मुनिजन ऐसा ही गाते हैं। दौलतराम कहते हैं कि जो अपने गुणों में मगन होकर चैतन्यस्वरूप के आनंद का ध्यान करते हैं वे जीव सुखी होते हैं, सुख पाते हैं । गरन = गलना; धरन = धारना । दौलत भजन सौरभ १६७

Loading...

Page Navigation
1 ... 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208