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(८८) जिया तुम चालो अपने देश, शिवपुर थारो शुभ थान॥टेक.॥ लख चौरासीमें बहु भटके, लह्यौ न सुखरो लेश ॥१॥जिया. ।। मिथ्यारूप धरे बहुतेरे, भटके बहुत विदेश॥२॥जिया,॥ विषयादिक बहुत दुख पाये, भुगते बहुत कलेश ॥३॥ जिया.॥ भयो तिरजंच नारको नर सुर, करि करि नाना भेष॥ ४॥ जिया.॥ 'दौलतराम' तोड़ जगनाता, सुनो सुगुर उपदेश ।। ५ ।। जिया.॥
हे जीव ! तुम अपने देश में चलो। शिवपुर/मोक्ष ही तुम्हारा स्थान हैं और वह शुभ स्थान है।
चौरासी लाख योनियों में बहुत भटक लिये, परंतु कहीं पर तनिक-सा भी सुख नहीं मिला। __ अनेक मिथ्यावेश-रूप तुमने धारण किए और अनेक विदेशों, जो तुम्हारे अपने देश नहीं है, में तुम भटकते रहे।
इन्द्रिय-विषयों के कारण बहुत दुःख पाए और बहुत संक्लेश सहे।
चारों गतियों - तिर्यंच, मनुष्य, नरक और स्वर्ग आदि में अनेक रूप में जन्म लिया।
दौलतराम कहते हैं कि हे जीव! तुम सत्गुरु का उपदेश सुनो और इस जगत से अपना नाता - संबंध तोड़ लो।
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दौलत भजन सौरभ