Book Title: Daulat Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachandra Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 183
________________ श्री जिनेन्द्र के संशय और मोह को दूर करनेवाले वचनों को सुनने का अवसर अति दुर्लभ है, यह अत्यन्त कठिनाई से प्राप्त होता है। दौलतराम कहते हैं कि तू अपने हित-अहित का विचार करके अब मोक्षमार्ग पर आरूढ़ होकर उसके अनुकूल आचरण का निर्वाह कर अर्थात् संयमरूप चारित्र का पालन कर । कसरी = तीन, गाढ़ी। दौलत भजन सौरभ १६१

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