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जल
यह जीव चाह इच्छाओं की आग में निरंतर दहक रहा है, तप रहा है, रहा है, फिर भी उन इच्छाओं को नहीं छोड़ता और समतारूपी अमृत के पान की चाहना करके भी जिनेन्द्र की भक्ति में अवगाह नहीं करता जबकि यह करना सरल हैं, सुगम है, तेरे योग्य है, निकट से तुझे बता दिया है, तुझे उपदेश दिया है ।
हे जीव ! यह मनुष्यभव - श्रेष्ठकुल तुझे मिला है। तुझे जैन-शासन मिला है, धर्म-साधन का अवसर मिला है। दौलतराम कहते हैं कि तू अपने निजस्वरूप का चिंतन कर जो अनादि से तूने नहीं किया है।
नलिनी
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यह तोता पकड़ने को एक चकरी होती हैं, इसमें रस्सी में एक चकरी पिरोई होतो. है, जब तोता उड़ता - उड़ता आकर उस पर बैठ जाता है तो चकरी स्वमेव घूमने लगती है जिसके कारण उस पर बैठा तोता भी घूम जाता है और उल्टा लटक जाता है, उस डोरो में अटककर फँस जाता है। गाहे
अवगाह करना, डूबना, स्नान करना ।
दौलत भजन सौरभ
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