________________
जहाँ नरक के से दुःखों का कहीं अन्त नहीं दिखाई देता, जिसमें तनिक भी सुख नहीं है - ऐसे विषम ज्वर के ताप में जल रहे कौन से संसारीजन सुखी हैं ?
जहाँ क्षणमात्र में कुत्ता देव हो जाता है, राजा कीड़ा हो जाता है, धनवान भिखारी हो जाता है ! जहाँ अपने पुत्र के विरह में मरकर पुनः बाघिनी के रूप में जन्म लेकर अपने ही पुत्र की देह का विदारण करती है I
बचपन में अपने हित/अहित का ज्ञान नहीं होता । यौवन काल में कामवासना में जलता है और वृद्ध होने पर अंग शिथिल होकर विकलांग हो जाता हैं, इसमें कौनसी दशा सुखकारी है ?
ऐसे इस संसार की असारता को देखकर हे भव्य ! तू अविलंब मोक्षमार्ग का अनुगमन कर । दौलतराम कहते हैं कि इस संसार से विरक्त उदास होकर अब जिनेन्द्रदेव के गुणों का चिंतवन कर, भजन कर ।
रंभ - थंभ = केले का धंभा / तना; धी = बुद्धि, वामा स्त्री; श्वसा= बहिन; मंडल = कुत्ता;
आखंडल
इन्द्र, देव ।
१३६
=
L
दौलत भजन सौरभ