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जिनके शुभ्र वर्ण शरीर की सुन्दर कान्ति करोड़ों सूर्यों के प्रकाश को भी। छुपानेवाली हैं। जिनके आत्मा की ज्योति के प्रकाश में अनत ज्ञेय (जाननयोग्य पदार्थ) दीपायमान हो रहे हैं; प्रकाशित हो रहे हैं।
वे चन्द्रप्रभ सदैव उदित हैं, कभी अस्त नहीं होते: कलंकरहित हैं, अक्षय हैं। मुनिरूपी तारागण का चित्त जिनमें सदा लगा रहता है, उनके ज्ञान की चाँदनी लोक व अलोक में भी सीमित नहीं रह पा रही है अर्थात् सर्वत्र व्याप रही है।
वे चन्द्रप्रभ समतारूपी समुद्र को बढ़ानेवाले, जगत को आनंदित करनेवाले हैं । उनको देवगण भी शीश नमाते हैं । दौलतराम विनती करते हैं कि जगत में भ्रमण करानेवाले, भटकानेवाले संशय, त्रिमोह व विभ्रम का हरण करो, नाश करो।
अछीन = अक्षय हाहा, हुहू, नारद और तुंबर
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ये गंधर्व जाति के देवों के भेद हैं।
दौलत भजन सौरभ