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(५७) जय जिन वासुपूज्य शिव-रमनी-रमन मदन-दनु-दारन हैं। बालकाल संयम सम्हाल रिपु, मोहव्याल बलमारन हैं। जाके पंचकल्यान भये चंपापुर में सुखकारन हैं। वासववृंद अमंद मोद धर, किये भवोदधि तारन हैं॥१॥ जाकै वैन मुधा त्रिभुवन जन, को भमरोग विदारन हैं। जा गुनचिंतन अमलअनल मृत, जनम-जरा-वन-जारन हैं॥२॥ जाकी अरुन शांतछवि-रविभा, दिवस प्रबोध प्रसारन हैं। जाके चरन शरन सुरतरु वांछित शिवफल विस्तारन हैं।॥३॥ जाको शासन सेवत मुनि जे, चारज्ञानके धारन हैं। इन्द्र-फणींद्र-मुकुटमणि-दुतिजल, जापद कलिल पखारन हैं ॥४॥ जाकी सेव अछेवरमाकर, चहुंगतिविपति उधारन हैं। जा अनुभवघनसार सु आकुल, - तापकलाप निवारन हैं। ॥ द्वादशमों जिनचन्द्र जास वर, जस उजासको पार न हैं। भक्तिभारतें नमें 'दौल' के, चिर-विभाव-दुख टारन हैं॥६॥
हे वासुपूज्य जिनदेव, आपकी जय हो । आप मोक्षरूपी लक्ष्मी के साथ क्रीड़ा में - केलि में रत हैं, कामरूपी राक्षस का संहार करनेवाले हैं । बाल्यकाल से ही संयम को धारणकर मोहरूपी सर्प का बलपूर्वक नाश करनेवाले हैं।
चंपापुरी में हुए आपके पाँचों कल्याणक अत्यंत सुखकारी हैं। इन्द्र आदि अति आनंद से भरकर भव-समुद्र के पार हो गए हैं।
जिनके वचनामृत संसारीजनों के भ्रम का नाश करनेवाले हैं, जिनके गुणचितवन की शुद्ध ध्यानाग्नि से जन्म-मृत्यु व बुढ़ापारूपी जंगल भस्म हो जाता है।
दौलत भजन सौरभ