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जिन्होंने मोहनीय कर्मरूपी बलीता ( ईंधन ) व इंद्रिय विषयों के वेदन को तप की अग्नि में भस्मकर अघातिया कर्मों की राख उड़ाई; जिसके कारण उनका मोक्षरूपी लक्ष्मी से मिलन हुआ। लाख चतुराई करो पर ऐसे सम्यक्ज्ञान का फाग - होलिकोत्सव का संयोग बड़े सौभाग्य से प्राप्त होता है। दौलतराम कहते हैं कि वह सब जो दीनदयालु, कृपालु गुरु ने तुझे बता दिया है उसे चित्त से न भुला अर्थात् सदैव ध्यान में रख ।
पूरक प्राणायाम में श्वास भीतर लेना;
कुंभक प्राणायाम में श्वास को भीतर रोकना रेचक
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श्वास को बाहर निकालना |
दौलत भजन सौरभ