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(६७) सांवरियाके नाम जपेतै, छूट जाय भवभामरिया।।टेक ॥ दुरित दुरत पुन पुरत फुरन गुन, आतमकी निधि आगरिया। विघटत है परदाह चाह झट, गटकत समरस गागरिया ॥१॥ कटत कलंक कर्म कलसायन, प्रगटत शिवपुरडागरिया। फटत घटाघन मोह छोह हट, प्रगटत भेद-ज्ञान घरिया॥२॥ कृपाकटाक्ष तुमारीहीत, जुगलनागविपदा टरिया ! धार भये सो मुक्तिरमावर, 'दौल' नमै तुव घागरिया ॥३॥
साँवरे रंगवाले (श्याम वर्णवाले) हे भगवान पार्श्वनाथ ! आपका नाम जपने से, नाम स्मरण करने से, भव--भ्रमणरूपी भँवर से छुटकारा हो जाता है।
पाप छुप जाते हैं, नष्ट हो जाते हैं ; गुणों का विकास होता है और आत्मनिधि प्रकाशित हो जाती है, प्रकट होती है । समतारूपी रस से भरी गागर-मटकी को गटकने से, निगलने से, पान करने से अन्य अर्थात् परद्रव्य की कामनारूपी दाह . जलन नष्ट हो जाती है।
कर्मरूपी कलश - पात्र का दाग - काला निशान जैसे ही नष्ट होता है अर्थात् कर्म के हटते ही मोक्ष की राह स्पष्ट दिखाई देने लगती है और मोहरूपी छाई घटा के विघटने से - बादलों के बिखरने से तत्काल भेद-ज्ञान होता है। स्व और पर का भेद स्पष्ट समझ में आने लगता है।
आपकी कृपा-दृष्टि के कारण ही अग्नि में झुलसते नाग के जोड़े का उद्धार हुआ। ऐसे आपको हृदय में धारण करने से अनेकजन मोक्षरूपी लक्ष्मी के स्वामी हो गए। ऐसे आपके चरणों में दौलतराम नमन करते हैं।
भामरिया = भंवर; दुरित = पाप; दुरत - छुपना, हटना, भागना; फुरत - स्फुरण: गटकना = गले के नीचे उतारना; छोह = राग द्वेष ।
दौलत भजन सौरभ