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जिनकी शान्त छवि सूर्य की प्रातःकालीन लाल किरणों के समान ज्ञानरूपी दिन का प्रसार करती हैं। जिनके चरणों की शरण स्वर्ग व मोक्ष की दाता है ।
चार ज्ञान के धारी मुनिजन-गणधर आपके शासन की सेवा / मान्यता करते हैं। मुकुटधारी इन्द्र, नागेन्द्र, नरेन्द्र आदि जिसके चरणों की ज्योतिरूपी जल से अपने पाप मल को धोते हैं ।
जिनकी भक्ति से अक्षयपद की प्राप्ति होती है, जो चारों गति के दुःखों से उद्धार करनेवाली है। जिनके घने अनुभव के फलस्वरूप कुता का नाम हो जाता है ।
दौलतराम अपने दीर्घकाल से चले आ रहे विभावों के दुःख को टालने के लिए भक्ति के भारवश उन बारहवें जिनेश्वर को, जिनके यश का कोई पार नहीं हैं, नमन करते हैं।
मदन दनु - कामदेवरूपी राक्षस दारन मारनेवाला, मोह काल - मोहरूपी सर्प
सुरतरु = कल्पवृक्षः अछेव अक्षय ।
दौलत भजन सौरभ
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