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उस चाँदनी में भव्यजनों के मनरूपी कमल प्रफुल्लित हो गए हैं, मिथ्यात्वरूपी अंधकार नष्ट हो गया है। सभी प्राणियों की संसार की तपन दूर हो चली हैं और ज्ञानरूपी जल ज्वार की भाँति बढ़ने लगा है। चन्द्रमा को देख कामरूपी चकवा भी जुदा/दूर हो चला है।
दौलतराम कहते हैं कि प्रफुल्लित होकर श्री जिनेन्द्ररूपी चन्द्रमा से अपने चित्त को जोड़ो जिससे कर्मबन्धन खुल जाए और नागदमनी को हृदय में धारण करो जिससे मोहरूपी सर्प विषरहित हो जाए, निर्विष हो जाए।
जुन्हाई = चाँदनी; अंबुद = जल; बंद = बाँधना, जोड़ना; चंद - प्रफुल्लित होना; नागदमनी = नाग को वश में करने की विद्या।
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दौलत भजन सौरभ