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समवशरण में सर्वोत्कृष्ट वैभव के बीच आप पूर्ण अपरिगृही व परमशुद्ध विराजित हो। क्रोध के बिना ही आपने दुष्ट मोह का नाश किया है। आप त्रिभुवनपूज्य .. तीन लोकों में पूजनीय हो, मानकषायरहित हो।
जग में विमुख-वैरागी होकर भी जगत को जाननेवाले, मात्र अपने ही स्वरूप में लीन, लोक के सब ज्ञेयों को दर्पण की भाँति अपने ज्ञान में झलकानेवाले हो, जानने-देखनेवाले हो और दुःख-सुख में, शत्रु-मित्र आदि में समता के धारी हो, समानभाव रखनेवाले हो।
आपने परम ब्रह्म की चर्या में लीन होकर मोक्षरूपी लक्ष्मी को पा लिया है, ढूँढ लिया है। आप कृतकृत्य हैं, आपको कुछ भी करना शेष नहीं रहा है । फिर भी आप स्वयं मोक्ष-मार्ग को दिखानेवाले उपदेशक व नेता हो। यह आपकी कृपा है, आपकी भक्ति ही मुक्ति का कारण है, चिह्न है। दौलतराम कहते हैं कि हे दयाल जो कृति-कार्य आपने किया है अर्थात् मोक्षपद पाया है, वह मुझे भी प्राप्त हो।
पाक का विकली एक का कति
बिलानो = नष्ट करना; निदानी - शुद्ध; अगवानी - नेताः कृति = कार्य।
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दौलत भजन सौरभ