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गर्मी में पहाड़ की चोटी पर सर्दी में नदी के किनारे और वर्षा में पेड़ के नीचे बैठ कर जो ध्यान करते हैं; जो करुणा से, दया से भीगे हुए हैं त्रस और स्थावर जीवों को देखकर संभलकर चलते हैं और ईर्ष्या समिति का पालन करते हैं, ऐसे मुनिवर मुझे कब मिलेंगे ?
जो दृढ़ता से शील व्रत को पालते हैं; काम को जिन्होंने मार दिया है, जीत लिया है और मोहरूपी मैल को दूर कर दिया है, जो वन में रहकर एक मास के, छह मास के उपवास करते हैं और जब भी आहार ग्रहण करते हैं तब केवल प्रासुक अर्थात् शुद्ध आहार ही ग्रहण करते हैं ऐसे मुनिवर मुझे कब मिलेंगे ?
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जिनके जरा-सा भी आर्त और रौद्र ध्यान नहीं है, जो धर्म ध्यान व शुक्ल ध्यान में लीन रहते हैं और अपनी आत्मा के गहरे ध्यान में डूबे रहकर, अपना उपयोग शुद्ध रखते हैं, अपने शुद्ध स्वरूप का विचार करते हैं, ऐसे मुनिवर मुझे कब मिलेंगे?
जो आप स्वयं इस अपार अगम अथाह भवसागर से तैरकर परिश्रमकर, तपस्या कर स्वयं पार होते हैं व औरों को भी इसी प्रकार पार कराते हैं। दौलतराम कहते हैं कि ऐसे जैन साधुओं को, गुरुओं को हमारा नित्यप्रति सदैव नमन है ।
मार = कामदेव
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दौलत भजन सौरभ