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इस संगति से अपने कल्याण के लिए चारों अनयोगों पर दृष्टि जाती है, उनकी और रुचि होती है और मोक्ष का लाभ व उस मार्ग पर बढ़ने की चाह बढ़ जाती है।
यह संगति सम्यक्त्वरूपी वृक्ष को धारण करनेवाली है, देह व मन को वश में करनेवाली है, संसार-समुद्र से तारनेवाली नौका है व कामदेवरूपी भयंकर सर्प के विष को निरस्त करनेवाली है अर्थात् साधर्मी बन्धुओं की संगति कामदेवरूपी सर्प के विष को दूर करनेवाली जड़ी-बूटी है।
पूर्व कर्मों के फलस्वरूप यह मोक्षमार्गरूपी लक्ष्मी मिली है, इसकी साधना करो। दौलतराम कहते हैं कि यह ही बात खरी है, सत्य है।
करन - देह, करि = मानस, तरनि - नौका, समर = कामदेव ।
दौलत भजन सौरभ