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दीठा भागनतैं जिनपाला,
सुभग निशंक रागविन यातैं, जास ज्ञानमें युगपत भासत,
निजमें लीन हीन इच्छा पर
लखि जाकी छवि आतमनिधि निज 'दौल' जासगुन चिंतत रत है, निकट विकट
मोहनाशनेवाला ॥ टेक ॥
बसन न आयुधवाला ॥ १ ॥
सकल
पदारथमाला ॥ २ ॥
हितमितवचन हितमितवचन रसाला ॥ ३ ॥
पावत होत
निहाला ॥ ४ ॥
भवनाला ॥५ ॥
अहोभाग्य मेरे कि मुझे जिनपाला (अर्थात् बारहवें गुणस्थान तक के जीवों के रक्षक), जिसने मोह का नाश कर दिया है, के दर्शन का सौभाग्य मिला है अर्थात् उनके दर्शन हुए हैं ।
वे जिनपाला निशंक हैं अर्थात् जिन्हें किसी प्रकार शंका नहीं है, वीतरागी हैं, सुडौल शरीरवाले हैं, उनके साथ किसी स्त्री का साथ नहीं और न वे कोई हथियार - शस्त्र धारण किए हुए हैं। जिनके ज्ञान में सभी पदार्थ युगपत झलकते हैं।
वे निज स्वरूप में ही लीन हैं, आत्मनिष्ठ हैं, उन्हें पर की/ अन्य की कोई इच्छा नहीं है, वे हित-मित वचनवाले हैं, सम्पूर्ण रस से भरपूर हैं।
जिसके दर्शन से अपनी आत्मसंपदा के दर्शन होते हैं, प्राप्ति होती है। जिसे पाकर सब धन्य हो जाते हैं।
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दौलतराम कहते हैं कि उनके गुणों का चिंतवन करने से उसमें रत- भगन रहने से, यह दुष्कर भव-समुद्र नाले के समान छोटा-सा रह जाता है और उसका भी अन्त समीप आ जाता है !
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जिनपाला चौधे गुणस्थान (अविरत सम्यक्त्व) से बारहवें गुणस्थान (क्षीणमोह) तक के जीवों को 'एकदेश जिन' कहा जाता है; उनका रक्षक 'जिन पाला' कहलाता है ।
दौलत भजन सौरभ
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