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नष्ट हो जाता है और वह अपनी स्वभाव-परिणतिरूप चकवी को प्राप्त कर लेता है।
सूर्य का उजास होने पर कमल पुष्प के खिल जाने से जैसे कमल-पुष्प में जकड़ा हुआ भ्रमर मुक्त हो जाता है उसी प्रकार जिनेन्द्ररूपी सूर्य के दर्शन के उजास से भव्यात्मा कर्मबंध से मुक्त हो जाता है। दौलतराम कहते हैं कि आत्मानुभव के उजास में अपना व जगत का, निज और पर का अंतर अनुभव में आता है।
आनन - चेहरा; कज = काई; स्मर - कामदेव तस्कर - चोर: उडु = तार; हंस - आत्मा कोक = चकवा; मुंचन = छुटकारा पाना।
दौलत भजन सौरभ