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( ८ )
आज मैं परम पदारथ पायौ, प्रभुचरनन चित लायौ ॥ टेक ॥
सहजकल्पतरु छायाँ ॥ १ ॥ आज. ॥
अशुभ गये शुभ प्रगट भये हैं, ज्ञानशक्ति तप ऐसी जाकी, चेतनपद
दरसायो ॥ २ ॥ आज ।।
अष्टकर्म रिपु जोधा जीते, शिव अंकूर
जमायौ ॥ ३ ॥ आज. ॥
आज मुझे परम पदार्थ की / श्रेष्ठ पदार्थ की प्राप्ति हुई है, बोधि हुई है कि मेरा चित्त प्रभु के चरणों में लगा है।
अब सब अशुभ संयोग मिट गए हैं, समाप्त हो गए हैं और शुभ संयोग प्रकट हुए हैं जिससे मुझे प्रभुरूपी कल्पवृक्ष सहज ही मिल गया है।
जिनका ज्ञान व तप ऐसा है कि उनके दर्शन से अपने आत्मस्वरूप का भान/ दर्शन होने लगा है ऐसे प्रभु के चरणों में चित्त लगा है।
जिन्होंने आठ कर्मरूपी योद्धा शत्रुओं को जीतकर मोक्षरूपी अंकुर को दृढ़ किया है ऐसे प्रभु के चरणों में मेरा चित्त लगा है।
दौलत भजन सौरभ
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