________________
२८ ] चरणानुयोग : प्रस्तावना नैतिक मूल्यांकन अलग-अलग होता है। उदाहरण के रूप में, व्यक्ति की नैतिक कसौटी अन्तर्राष्ट्रीयता के समर्थक व्यक्ति की परिवार नियोजन को धारणा जनसंख्या के बाहुल्य वाले देशों नैतिक कसौटी से पृथक होगी। पूंजीवाद और साम्यवाद के की दृष्टि से चाहे उचित हो, किन्तु अल्प जनसंख्या वाले देशों नैतिक मानदण्ड भिन्न-भिन्न ही रहेंगे । अतः हमें नैतिक मानदण्डों एवं जातियों की दृष्टियों से अनुचित होगी। राष्ट्रवाद अपनी की अनेकता को स्वीकार करते हुए यह मानना होगा कि प्रत्येक प्रजाति की अस्मिता को दृष्टि से चाहे अच्छा हो, किन्तु सम्पूर्ण नैतिक मानदण्ड अपने उरा कृष्टिकोण के आधार पर ही सत्य है। मानवता की कि गुपित है। इस बार एकर कुछ लोग यहाँ किसी परम शुभ की अवधारणा के आधार जातिवाद एवं सम्प्रदायवाद को कोसते हैं तो दूसरी ओर भारती- पर किसी एक नैतिक प्रतिमान का दावा कर सकते है। किन्तु बह पता के नाम पर अपने को गौरवान्वित अनुभव करते हैं । क्या परम शुभ या तो इन विभिन्न शुभों या हितों को अपने में अन्तहम यहाँ दोहरे मापदण्ड का उपयोग नहीं कर रहे हैं ? स्वतन्त्रता निहित करेगा, या इनसे पृथक होगा, यदि वह इन भिन्न-भिन्न की बात को ही लें । क्या स्वतन्त्रता और सामाजिक अनुशासन मानवीय शुभों को अपने में अन्तर्निहित करेगा तो वह भी नैतिक सहगामी होकर पल सकते हैं ? आपातकाल को ही लीजिये, प्रतिमानों की अनेकता को स्वीकार करेगा, और यदि वह इन वयक्तिक स्वतन्त्रता के हनन की दृष्टि से या नौकरशाही के हावी मानवीय शुभों से पृथक् होगा तो नीतिशास्त्र के लिए व्यर्थ ही होने की दृष्टि से हम उसकी आलोचना कर सकते हैं किन्तु होगा; क्योंकि नीतिशास्त्र का पूरा सन्दर्भ मान-सन्दर्भ है। अनुशासन बनाये रखने और अराजकता को समाप्त करने की नैतिक प्रतिमान का प्रश्न तभी तक महत्वपूर्ण है जब तक मनुष्य दृष्टि से उसे उचित ठहराया जा सकता है। वस्तुत: उचितता मनुष्य है, यदि मनुष्य २. नुष्य के स्तर से ऊपर उठकर देवत्व को और अनुचितता का मूल्यांकन किसी एक दृष्टिकोण के आधार प्राप्त कर लेता है या मनुष्य के स्तर से नीचे उतरकर पशु वन पर न होकर विविध दृष्टिकोणों के आधार पर होता है, जो एक जाता है तो उसके लिए नैतिकता या अनैतिकता का कोई अर्थ दृष्टिकोन या अपेक्षा से नैतिक हो सकता है, वही दूसरे दृष्टिकोण ही नहीं रह जाता है और ऐसे यथार्थ मनुष्य के लिए नैतिकता या अपेक्षा से अनुचित हो सकता है जो एक परिस्थिति में उचित के प्रतिमान अनेक ही होंगे । नैतिक प्रतिमानों के सन्दर्भ में यही हो सकता है, वहीं दूसरी परिस्थिति में अनुचित हो सकता है। अनेकान्तदृष्टि सम्यग्दृष्टि होगी। इसे हम नैतिक प्रतिमानों का जो एक व्यक्ति के लिए उचित है, वही दुसरे के लिए अनुचित अनेकान्तवाद कह सकते हैं। हो सकता है। एक स्थूल शरीर वाले व्यक्ति के लिए स्निग्ध बन दर्शन में समाचार का मानवण्ड पदार्थों का सेवन अनुचित है, किन्तु कृशकाय व्यक्ति के लिए फिर भी मूल प्रश्न यह है कि जैन दर्शन का चरम साध्य उचित है। अत: हम कह सकते हैं कि नैतिक मूल्यांकन के विविध क्या है ? जैन दर्शन अपने चरम साध्य के बारे में स्पष्ट है। दुष्टिकोण हैं और इन विविध दृष्टिकोणों के आधार पर विविध उसके अनुसार व्यक्ति का चरम साध्य मोक्ष या निर्वाण की प्राप्ति नैतिक प्रतिभान बनते हैं, जो एक ही घटना का अलग-अलग है, वह यह मानता है कि जो आचरण निर्वाण या मोक्ष की नैतिक मूल्यांकन करते हैं।
दिशा में जाता है वही सदाचार की कोटि में आता है। दूसरे नैतिक मूल्यांकन परिस्थिति सापेक्ष एवं दृष्टि-सापेक्ष मूल्यां- शब्दों में जो आचरण मुक्ति का कारण है वह सदाचार है, और कन हैं। अत: उनकी सार्वभौम सत्यता का दावा करना भी व्यर्थ जो आचरण बन्धन का कारण है, वह दुराचार है। किन्तु यहाँ है । किसी दृष्टि-दिशेष या अपेक्षा-विशेष के आधार पर ही वे पर हमें यह भी स्पष्ट करना होगा कि उसका मोक्ष अथवा सत्य होते हैं। संक्षेप में, सभी नैतिक प्रतिमान मूल्य-वृष्टि-सापेक्ष निर्वाण से क्या तासर्य है। जैन धर्म के अनुसार निर्वाण या हैं और मूल्य-दृष्टि स्वयं व्यक्तियों के बौद्धिक विकास, संस्कार मोक्ष स्वभाव-दशा एवं मात्मपूर्णता की प्राप्ति है। वस्तुतः हमारा तथा सांस्कृतिक, सामाजिक एवं भौतिक पर्यावरण पर निर्भर जो निज स्वरूप है उसे प्राप्त कर लेना अथवा हमारी बीजरूप करती है और चूंकि व्यक्तियों के बौद्धिक विकास, संस्कार तथा क्षमताओं को विकसित कर आत्मपूर्णता की प्राप्ति ही मोक्ष है। सांस्कृतिक, सामाजिक एवं भौतिक पर्यावरण में विविधता और उसकी पारम्परिक शब्दावली में परमाव से हटकर स्वभाव में परिवर्तनशीलता है, अतः नंतिक प्रतिमानों में विविधता या स्थित हो जाना ही मोक्ष है । यही कारण था कि जैन दार्शनिकों अनेकता स्वाभाविक ही है।
ने धर्म की एक विलक्षण एवं महत्वपूर्ण परिभाषा दी हैं। उनके - वैयक्तिक शुभ की दृष्टि से प्रस्तुत नैतिक प्रतिमान मामा- अनुसार धर्म वह है जो वस्तु का निज स्वभाव है (बस्कुसहायो जिक शुभ की दृष्टि से प्रस्तुत नैतिक प्रतिमान से भिन्न होगा। सम्मो) व्यक्ति का धर्म या साध्य वही हो ममता है जो उसकी इसी प्रकार वासना पर आधारित नैतिक प्रतिमान विवेक पर चेतना या आत्मा का निज स्वभाव है और जो हमारा निज आधारित नैतिक प्रतिमान से अलग होगा। राष्ट्रवाद से प्रभावित स्वभाव है उसी को पा लेना ही मुक्ति है। अत: उस स्वभाव