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१० ]
वृहद्रव्यसंग्रह
[ गाथा ३
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नयार्थोऽप्युक्तः । इदानीं मतार्थः कथ्यते । जीवसिद्धिश्चार्वाकं प्रति, ज्ञानदर्शनोपयोगलक्षणं नैयायिकं प्रति, अमूर्तजीवस्थापनं भट्टचार्वाकद्वयं प्रति कर्मकर्तृस्वस्थापनं सांख्यं प्रति, स्वदेहप्रमितिस्थापनं नैयायिकमीमांसक सांख्यत्रयं प्रति, कर्मभोक्त त्वव्याख्यानं बौद्ध प्रति, संसारस्थव्याख्यानं सदाशिवं प्रति, सिद्धत्वव्याख्यानं भट्टचार्वाकद्वयं प्रति ऊर्ध्वगतिस्वभावकथनं माण्डलिक ग्रन्थकारं प्रति, इति मतार्थो ज्ञातव्यः । श्रागमार्थः पुनः “ श्रस्त्यात्मानादिबद्धः" इत्यादि प्रसिद्ध एव । शुद्धनयाश्रितं जीवस्वरूपमुपादेयम् शेषं च यम् । इति हेयोपादेयरूपेण भावार्थोऽप्यवबोद्धव्यः । एवं शब्दनयमतागमभावार्थो यथासम्भवं व्याख्यानकाले सर्वत्र ज्ञातव्यः । इति जीवादिनवाधिकारसूचनसूत्रगाथा || २ ||
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अतः परं द्वादशगाथाभिनवाधिकारान् विवृणोति तत्रादौ जीवस्वरूपं
कथयतिः
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तिक्काले चदुपाणा इन्दियवल माउआणपाणो य । ववहारा सो जीवो णिच्छयणपदो दु चेदणा जस्स ॥ ३ ॥
त्रिकाले चतुःप्रारणा इन्द्रियं बलं आयुः आनप्राणश्च । व्यवहारात् स जीवः निश्चयनयतस्तु चेतना यस्य ॥ ३ ॥
जीव की सिद्धि की गई है। नैयायिक के लिये जीव का ज्ञान तथा दर्शन उपयोगमय लक्षण का कथन है । भट्ट तथा चार्वाक के प्रति जीव का अमूर्त स्थापन है, 'आत्मा कर्म का कर्ता है' ऐसा कथन सांख्य के प्रति है । 'आत्मा अपने शरीर प्रमाण है', यह कथन नैयायिक, मीमांसक और सांख्य इन तीनों के प्रति है । 'आत्मा कर्मों का भोक्ता है' यह कथन बौद्ध के प्रति है । 'आत्मा संसारस्थ है' ऐसा वर्णन सदाशिव के लिये है । 'आत्मा सिद्ध है' यह कथन भट्ट और चार्वाक के प्रति है । 'जीव का ऊर्ध्वगमन स्वभाव है' यह कथन मण्डलीक मतानुयायी के लिये है । इस तरह मत का अर्थ जानना चाहिये । 'अनादिकाल से कर्मों से बँधा हुआ आत्मा है' इत्यादि आगम का अर्थ तो प्रसिद्ध ही है । शुद्ध नय के आश्रित जो जीव का स्वरूप है वह तो उपादेय यानी — प्रहण करने योग्य है और शेष सब त्याज्य है । इस प्रकार हेयोपादेयरूप से भावार्थ भी समझना चाहिये । इस तरह शब्द; नय; मत; आगमार्थ; भावार्थ यथासम्भव व्याख्यान के समय में सब जगह जानना चाहिये । इस तरह जीव आदि नौ अधिकारों को सूचित करने वाली यह दूसरी गाथा है || २ ||
अब इसके आगे १२ गाथाओं द्वारा नौ अधिकारों का विवरण कहते हैं । उनमें पहले जीव का स्वरूप कहते है:
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गाथार्थ - तीन काल में इन्द्रिय; बल; आयु; श्वास-निश्वास इन चारों प्राणों को जो धारण करता है व्यवहारनय से वह जीव है । निश्चयनय से जिसके चेतना है. वही जीव है । ३ ।
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