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गाथा ५७ ]
तृतीयोऽधिकारः
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प्राप्नोति न च द्रव्यरूपेण विनाशोऽस्ति । ततः स्थितं शुद्धपारिणामिकमेव बन्धमोक्षौ न भवत इति ।
अथात्मशब्दार्थः कथ्यते । 'त' धातुः सातत्यगमनेऽर्थे वर्तते । गमनशब्देनात्र ज्ञानं भण्यते, 'सर्वे गत्यर्था ज्ञानार्था' इतिवचनात् । तेन कारणेन यथासंभवं ज्ञानसुखादिगुणेषु श्रासमन्तात् प्रति वर्तते यः स आत्मा भण्यते । अथवा शुभाशुभमनोवचनकाय व्यापार यथासम्भवं तीव्रमन्दादिरूपेण आसमन्तादतति वर्तते यः स आत्मा । अथवा उत्पादव्ययभ्रौव्यैरासमन्तादतति वर्तते यः स आत्मा ।
किश्च — यथैकोऽपि चन्द्रमा नानाजलघटेषु दृश्यते तथैकोऽपि जीवो नानाशरीरेषु तिष्ठतीति वदन्ति तत्तु न घटते । कस्मादिति चेत् - चन्द्रकिरणोपाधिवशेन घटस्थजलपुद्गला एव नानाचन्द्राकारेण परिणता, नचैकश्चन्द्रः । तत्र दृष्टान्तमाह-यथा देवदत्तमुखोपाधिवशेन नानादर्पणस्थ पुद्गला एव नानामुखाकारेण परिणता, न चैकं देवदत्तमुखं नानारूपेण परिणतम् । परिणमतीति चेत् - तर्हि दर्पणस्थप्रतिविम्बं चैतन्यं प्राप्नोतीति, न च तथा । किन्तु यद्येक एव जीवो
। इस कारण, 'शुद्धपारिणामिक भाव से जीव के बंध और मोक्ष नहीं है' यह कथन सिद्ध हो गया ।
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अब 'आत्मा' शब्द का अर्थ कहते हैं । 'त' धातु निरंतर गमन करने रूप अर्थ में है और 'सब गमनार्थक धातु ज्ञानार्थक होती हैं' इस बचन से यहाँ पर 'गमन' शब्द से ज्ञान कहा जाता है । इस कारण जो यथासंभव ज्ञान सुख आदि गुणों में सर्व प्रकार वर्त्तता है, वह आत्मा है । अथवा शुभ-अशुभ मन-वचन-काय की क्रिया के द्वारा यथासंभव तीब्र -मंद आदि रूप से जो पूर्णरूपेण वर्त्तता है, वह आत्मा है । अथवा उत्पाद, व्यय और धौव्य इन तीनों धर्मों के द्वारा जो पूर्णरूप से वर्त्तता है, वह आत्मा है ।
आशंका – जैसे एक ही चन्द्रमा अनेक जल के भरे हुए घटों में देखा जाता है, इसी प्रकार एक ही जीव अनेक शरीरों में रहता है। उत्तर - यह कथन घटित नहीं होता । प्रश्न-क्यों नहीं घटित होता ? उत्तर - चंद्रकिरणरूप उपाधि-वश से घटों में स्थित जल-रूपी पुद्गल ही नाना - चन्द्र - आकार रूप परिणत हुआ है, एक चंद्रमा अनेक रूप नहीं परिणमा है । दृष्टांत कहते हैं- जैसे देवदत्त के मुख रूप उपाधि के वश से अनेक दर्पणों में स्थित पुद्गल ही अनेक मुख रूप परिणमते हैं, एक देवदत्त का मुख अनेक रूप नहीं परिणमता । यदि कहो कि देवदत्त का मुख ही अनेक मुख रूप परिणमता है, तो दर्पणस्थित देवदत्त के मुख के प्रतिबिम्ब भी, देवदत्त के मुख की तरह, चेतन (सजीव) हो जायेंगे, परंतु ऐसा नहीं है।
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