Book Title: Bruhad Dravya Sangraha
Author(s): Bramhadev
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 259
________________ २३८ ] लघुद्रव्यसंग्रहः [ गाथा १५-२० जीव गाणी पुग्गल - धम्माऽधम्मायासा तहेव कालो य जीवा जिणमणिश्रो हु मरणइ जो हु सो मिच्छो ।। १५ ।। - अर्थ —‘जीवो गाणी' जीव ज्ञानी (ज्ञानवाला) है, 'पुग्गल - धम्माऽवम्मायासा त कालो य अज्जीवा' पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश तथा काल - अजीव हैं, 'जिगभणिओ' ऐसा श्री जिनेन्द्रदेव ने वर्णन किया है; 'ण हु मराइ जो हु सो मिच्छो' जो ऐसा नहीं मानता है, वह मिध्यादृष्टि है ॥ १५ ॥ मिच्छत्त' हिंसाई कसाय - जोगा य आसवो बंधो । सकसाई जं जीवो परिगिरहइ पोग्गलं विविहं ॥ १६ ॥ अर्थ- 'मिच्छतं हिंसाई कसाय-जोगा य आसवो' मिथ्यात्व, हिंसा आदि (त), कषाय और योगों से आस्रव होता है, 'बंधो सकसाई जं जीवो परिगिरहइ पोग्गलं विविह' कषाय सहित जीव नाना प्रकार के पुद्गल को जो ग्रहण करता है, वह बंध है ॥ १६ ॥ मिच्छत्ताईचाओ संवर जिण भइ जिरादेसे । कम्माण खत्रो सो पुरा अहिलसि Jain Education International • अर्थ- 'मिच्छत्ताईचाओ संघर जिण भरद्द' श्री जिनेन्द्रदेव ने मिथ्यात्वादि के त्याग को संवर कहा है, 'णिज्जरादे से कम्माण खओ' कर्मों का एकदेश क्षय निर्जरा है, 'सो पुरा अहिलसिओ अहिलसिओ य' बहुरि वह (निर्जरा ) अभिलाषा - सहित ( सकाम, अविपाक ) और अभिलाषा - रहित (काम, सविपाक ) ऐसे दो प्रकार की है ।। १७ ॥ हिलसिओ य ॥ १७ ॥ कम्म बंधण- बद्धस्स सम्भूदस्संतरपणो । सव्वकम्म-विम्मुिको मोक्खो होइ जिडिदो ॥ १८ ॥ अर्थ — 'कम्म बंधण- बद्धस्स सन्भूदस्संतरपणो' कर्मों के बंधन से बद्ध सद्भूत ( प्रशस्त ) अन्तरात्मा का 'सव्वकम्म विशिम्भुक्को' जो सर्व कर्मों से पूर्णरूपेण मुक्त होना (छूटना ) है 'जिरोडिदो मोक्खो होई' वह मोक्ष है; ऐसा श्रीजिनेन्द्रदेव ने वर्णन किया है | १८ | सादाऽऽउ णामगोदाणं पयडीओ सुहाहवे । पुरण तिथयरादी गं पावं तु आगमे ॥ १३ ॥ अर्थ–'सादाऽऽउ-णामगोदाणं पयडीओ सुहा हवे पुरण तित्थयरादी' साता वेदनीय, शुभ आयु, शुभ नाम तथा शुभ गोत्र एवं तीर्थङ्कर आदि प्रकृतियां पुण्य प्रकृतियां हैं, 'अगं पावं तु' अन्य (शेष प्रकृतियां ) पाप हैं, 'आगमे' ऐसा परमागम में कहा है | १६ | खासइ गर-पज्जा उप्पज्जइ देवपज्जत्रो तत्थ । जीवो स एव सव्वस्तभंगुप्पाय धुवा एवं ॥ २० ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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