Book Title: Bruhad Dravya Sangraha
Author(s): Bramhadev
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 272
________________ पारिभाषिक शब्द ] वृहद्र्व्यसंग्रहः [२५१ शब्द पृष्ठ । शब्द उ १७४ २८ २०३ १७१ १२७ ११६ ईश्वर | एकत्वअनुप्रेक्षा १०८ ईशान स्वर्ग १३८,१३६,१४०,१४१,१४२ एकत्ववितर्कवीचारध्यान ३५, २०० ईर्यापथशुद्धि एकदेशचारित्र १६१, १९२ एकदेशजिन उज्जयिनी (नगरी) एकदेशव्रत २२४, २२५ उत्तरकुरु (क्षेत्र) १२३,१२५,१३८ । एकदेश शुद्धनिश्चय ४,२२,४०,८२,६५,६६ उत्तराफाल्गुनी (नक्षत्र) १३६ २०२, २१६, २२०, २३० उत्तराभाद्र (नक्षत्र) १३६ एकेन्द्रिय . उत्तरायण १३६ उत्तराषाढ (नक्षत्र) १३६ ऐरावत क्षेत्र ___ १२१,१२४,१२५,१३५ उत्पाद ४५, ६२, ६३, ६७, ६८ उत्सर्ग वचन १६, २२६, २२७ | | ओम् (शब्द) उदुरुलि भट्टारक . १७१ उद्दायन राजा | कच्छा (देश) उद्धार सागर कच्छावति (देश) १२७ उद्योत ५०, ५२ कमल १२४ उपकार __ ७६ | करणानुयोग १८० उपगूहन (गुण) १७२ | कर्कट संक्रान्ति १३७ उपचरित सद्भूत (नय) १२, १८ | कर्ता ८,२०,२१,७४,७५,७६,८१,८२ उपचरितासद्भूत१२,१८,२१,२३,५६,१०३,१६३ कर्म १६०,१६८,१६६,२०२,२०५,२११ उपनय - २०६, २१० कर्मचेतना __४६ उपयोग ८, १३, १७, १८, ४६ | कर्मफल चेतना ४६ उपशम सम्यकत्त्व १७१, १६१ | कर्मभूमि १२४ उपशांतमोह ३५, १४८, १४६, १६६ | कल्पवृक्ष उपादान कारण ६१, ६३ | कषाय ___८६,८७,६०,६२,१११,१४६ उपाध्याय (साधु) २१४, २१५ कषाय मार्गणा ३७ उपासकाध्यनांग , १७६ काकतालिय न्याय उर्विला रानी १७५ कात्यायनी (विद्या) कापिष्ट स्वर्ग १३८, १३६, १४०, १४२ ऊर्ध्वगमन ६,४१, ४४ | कायमार्गणा कायशुद्धि १०१ ऋजुविमान १३८, १४० - कारण ७४,७५, ७६, १६६ १४३ १६५ ऋ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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