Book Title: Bruhad Dravya Sangraha
Author(s): Bramhadev
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 270
________________ शब्द कम्पनाचार्य किंचित्कर हेतु अगुरुलघु गुण अगुरुलघुत्व अग्निभूत अङ्का (देश) अङ्गबाह्य (१४) अचरम चक्षुदर्शन श्र वृहद्रव्यसंग्रहः पारिभाषिक शब्दसूची पृष्ठ Jain Education International अनुप्रेक्षा १७३ | अनुभाग-बंध २१० अनुमान ७६ अनुयोग ४२ अनैकान्तिक हेतु १६४ अन्तकृद्दशांग १२८ | अन्तरात्मा १७६ | अन्तरित पदार्थ १०६ | अन्यत्व अनुप्रेक्षा १३८, १३६, १४०, १४२, १७० शब्द १३, १४ | अन्वय दृष्टान्त अपध्यान ४८, ७५, ७७, ७६, ८३ अपराजित नगर १६८ १६६ अच्युत जीव अञ्जनचोर अतिमुक्त मुनि अधर्मद्रव्य ४८,४६,५४,५५,७४,७५,७६,७७ अपायविचय अधिकृत देव अध्यात्म अध्यात्म भाषा १५५, १५८, १६४, २०० अप्रत्याख्यानावरण अनुप्रेक्षा ६ २३२ | अप्रमत्तसंयत अपवाद व्याख्यान अपहृत संयम ४२, ४६ पूर्वकरण गुणस्थान १०३ | अब्बहुलभाग ४२ अभव्य १६६ | अभव्यसेन अनन्त सुख अनन्तमति (स्त्री) अनन्तवीर्य अभाषात्मक शब्द अनक्षरात्मक अभिधान अनायतन अभिध्येय अनिवृतिकरण गुणस्था ३५. १४७, १६६,२०० । अभिमत देव अनुतरोपपादिक दशांग १७३ | अभूतार्थं नय अनुदिश ( नव) १३८, १३६, १४०, १४२ अभेदनय अनुपचरित सद्भूत १२, १८ अनुपचरिता सद्भूत ११, १२, २०, २१,२३, २५, ५१, ८२, १०३ | अमूर्तिक अभ्युदय सुख अमूढदृष्टि ५०, ५१ १५८, १६७ For Personal & Private Use Only [ २४६ पृष्ठ १०३ ६०, ६१, १२, १४८ २०८, २०६, २१० १८० २१० १७६ ४५, ४७ २०६ १०६ २०६ ६५, २२८, २२६ १२८, १३० १६, २२६, २२७ १६३ १६८ ३४, १४७, १६६,२०० ३४,६४, १४७, १४८ १६१ ११५, ११६ ३८, ३६, ४७, १५५ १६५ ५० ७ ७ ६ ह ८०, १८६, १६० १४५ १७१ ८, १९, २०, ४८, ७५ www.jainelibrary.org

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