Book Title: Bruhad Dravya Sangraha
Author(s): Bramhadev
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 280
________________ पारिभाषिक शब्द ] शब्द वारीसेन (मुनि) विकल्प (संकल्प) विकल्पित निश्चय नय शब्द १७३ | वंश (अर्थात् क्षेत्र) ३४, १७२ वृहत्सिद्धचक्र २१८ | वृहस्पति २५ व्यतिरेक - दृष्टान्त विक्रिया-समुद्घात विजयानगरी १३० व्यय विजयापुरी १२६ विजयार्ध १२१, १२२, १२५, १३०, १३२ वितत (शब्द) विभीषण (राजा) विमोह वृहद्रव्यसंग्रहः ५१ १६६ वितर्क (शुक्ल - ध्यान) विदेह क्षेत्र १२१, १२३, १२४, १२५, १२७ विनयशुद्धि १०१ विपाक विचय (ध्यान) विपाक सूत्र विभङ्गा नदी विभ्रम विभाव व्यंजन पर्याय पृष्ठ विरजापूरी विरूद्ध हेतु विशाखा (नक्षत्र) विशोकपूरी विष्णु विष्णुकुमार (मुनि) वीचार (शुक्ल - ध्यान) वीतराग चारित्र वीतराग सम्यक्त्व वीर्याचार वेद - सम्यक्त्व वेदना-समुद्घात वेद - मार्गणा वैजयन्त नगर वैराग्य वैसिक (शब्द) Jain Education International १६८ १७६ १२७, १२८, १२६ १६३, १७७, १७८, १८७ ५२, ७६ १६८ १६३, १७७, १७८, १८७ १२१ २०४ १३४ २०६ ४५, ६२, ६३, ६७, ६८ २१६ १६० २०४ ४, ७, ८, ६, ११, १२, १५, १८, १६, २१, २२, २६, ३३, ५१, ५२, ५६, ५८, ७१, ७५, ७६, ७७, ८२, ६२, ६६, १०३ १६६, १७०, १७१, १७३, १७४, १७५, १६३ २०२, २०६, २१२, २१६ व्यवहार आराधना व्यवहार चारित्र व्यवहार ध्यान व्यवहार नय व्यवहार पंचाचार व्यवहार मोक्षमार्ग व्यवहार रत्नत्रय व्यवहार सम्यक्त्व व्यवहार ज्ञान १२६ २०६ | व्याख्यानम् १३६ | व्याख्येयं १२६ व्याख्याप्रज्ञप्त्यंग ७ १७६ २०० ५२,६७ ११६, १२०, १४१ ६८,६६,१६०,२२२, २२३, २२४, २२५ श ४६ व्युपरतक्रियानिवृत्ति ध्यान १७३ व्यंजन पर्याय १६६ व्यंतर व्रत ६५, १७५, १६०, १६४ १५१, १७५ २१४ १७७ २५ शतार (स्वर्ग) शनैश्चर (ग्रह) ३७ १३० शब्द १७३ शब्दात्मक श्रुतज्ञान ५१ शयनासन शुद्धि [२५६ Y शतभिष (नक्षत्र) २१४ १६०,१६१, १६२, १६५ ८१, १२६, १४८, १६०, १६१, १६५, २१६ १७५, १७६ १८० ७ For Personal & Private Use Only १३८, १३६, १४०, १३६ १४२ १३४ ५० १६, १८५ १०१ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 278 279 280 281 282 283 284