Book Title: Bruhad Dravya Sangraha
Author(s): Bramhadev
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 271
________________ अरिहंत १७६ २५०] वृहद्र्व्य संग्रहः [पारिभाषिक शब्द शब्द पृष्ठ । शब्द पृष्ठ अयोगिगुणस्थान ३५, ४८, १४८ স্থা अयोध्या १३०, १३५ आकार १७७ अरजापूरि आकाश ४८,४६,५५,५६,७४,७५,७६,७७ आकिंचन १०२ अलोकाकाश ६३, २११ आगमभाषा १५५, १५८, १६४, १६७, २०१ अवगाहन आचार्य २१३ अवध्या (नगरी) १३० आचाराङ्ग अवधिदर्शन १४, १८५ आचाराराधना (ग्रन्थ)१८०, १६२,२१४,२२३ अवधिज्ञान १७, १७६, १८५ आतप ५०, ५२ अविकल्पितनिश्चय २१८ आत्मा ___४५, २३१ अविपाक निर्जरा १४६, १५० आदिपद २०३, २०५ अविरत सम्यग्दृष्टि ५,३३,४७,६४,१४८,१६१ | आनत (स्वर्ग) १३८, १३६, १४०, १४२ अविरति ८६,८७, १४८ आयतन १६७ अत्रत १११, २२४ आरण (स्वर्ग) १३८, १३६, १४०, १४२ अशरण अनुप्रेक्षा १०४ | आराधना ६१, १२६, २१७, २२२ अशुचि अनुप्रेक्षा ११० आर्जव १०० अशुद्ध नय ८, ६, ११, १२, २१, २२, २३, आर्तध्यान (४) १६७ ३२,४७,५१,७६, ८२,६४, ६५, आर्द्रा (नक्षत्र) १३६ १०३, १६३, २०२ अशुद्ध पारिणामिक भाव आर्य खंड १२१, १२२, १३० ३८, ३६ अशुभ तैजस समुद्घात आर्य मनुष्य अशुभोपयोग आवर्ता (देश) ६४, १५७, १६२ अशोकपूरि आवास ११६, १२६ अश्वपूरि आश्लेषा (नक्षत्र) अश्विनी (नक्षत्र) आश्रम नगर अष्ट प्रवचन मातृ २२७ यास्रव ८०,८१, ८३, ८४, ८५, ६२, असद्भूत व्यवहार नय ४,१२,८२,१६३ . १११, १४८, १६४ असंयत सम्यग्दृष्टि ५,३३,४७,६४,१४८,१६१ आहारक मार्गणा असंज्ञी ३०, ३६, ११८ आहारक समुद्घात असिद्ध हेतु २०६, २१० आज्ञाविचय १६८ असुरकुमार ११६, ११६, १४१ अस्ति इन्द्र अहंकार इन्द्रक विमान अक्षरात्मक इन्द्रक बिल ११६, ११७ अक्षौहिणी (सेना) १६८ | इन्द्रिय मार्गणा अज्ञान १४ | इष्टदेव १३६ १२६ १३४ har ६७ १६७ ३७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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