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२३० ] वृहद्र्व्य संग्रहः
[ गाथा ५७ स्थानीयं बंधच्छेदकारणभूतं पौरुषं पुरुषस्वरूपं न भवति, तथैव शृङ्खलापुरुषयोर्य
द्रव्यमोक्षस्थानीयं पृथक्करणं तदपि पुरुषस्वरूपं न भवति । किंतु ताभ्यां भिन्न यदृष्टं हस्तपादादिरूपं तदेव पुरुषस्वरूपम् । तथैव शुद्धोपयोमलक्षणं भावमोक्षस्वरूपं शुद्धनिश्चयेन जीवस्वरूपं न भवति, तथैव तेन साध्यं यजीवकर्मप्रदेशयो। पृथक्करणं द्रव्यमोक्षरूपं तदपि जीवस्वभावो न भवति ; किंतु ताभ्यां भिन्न यदनन्तज्ञानादिगुणस्वभावं फलभूतं तदेव शुद्धजीवस्वरूपमिति । अयमत्रार्थ:यथा विवक्षितैकदेशशुद्धनिश्चयेन पूर्व मोक्षमार्मो व्याख्यातस्तथा पर्यायमोक्षरूपो मोक्षोऽपि, न च शुद्धनिश्चयनयेनेति । यस्तु शुद्धद्रव्यशक्तिरूपः शुद्धपारिणामिकपस्मभावलक्षणपरमनिश्चयमोक्षः, स च पूर्वमेव जीवे तिष्ठतीदानी भविष्यतीत्येवं न । स एव रागादिविकल्परहिते मोक्षकारणभूते ध्यानभावनापर्याये ध्येयो भवति, न च ध्यानभावनापर्यायरूपः । यदि पुनरकान्तेन द्रव्यार्थिकनयेनापि स एव मोक्षकारणभूतो ध्यानभावना. पर्यायो भएयतें तर्हि द्रव्यपर्यायरूपधर्मद्वयाधारभूतस्य जीवधर्मिणो मोक्षपर्याये जाते सति यथा ध्यानमावनापर्यायरूपेण विनाशो भवति, तथा - ध्येयभूतस्य जीवस्य शुद्धपारिणामिकभावलक्षणद्रव्यरूपेणापि विनाशः
और पुरुष इन दोनों का अलग होना है, वह भी पुरुष का स्वरूप नहीं है, किन्तु उन उद्यम और जंजीर के छुटकारे से जुदा जो देखा हुआ हस्तपाद आदि रूप आकार है, वही पुरुष का स्वरूप है । उसी प्रकार शुद्धोपयोगरूप जो भाव मोक्ष का स्वरूप है, वह शुद्ध निश्चयनय की अपेक्षा से जीव का स्वरूप नहीं है और उसी तरह उस भावमोक्ष से साध्य जो जीव
और कर्म के प्रदेशों के पृथक होने रूप द्रव्य मोक्ष का स्वरूप है, वह भी जीव का स्वभाव नहीं है, किंतु उन भाव व द्रव्यमोक्ष से भिन्न तथा उनका फलभूत जो अनन्त ज्ञान आदि गुणरूप स्वभाव है, वही शुद्ध जीव का स्वरूप है । यहाँ तात्पर्य यह है कि, जैसे विवक्षित-एकदेश शुद्ध-निश्चयनय से पहिले मोक्षमार्ग का व्याख्यान है; उसी प्रकार पर्यायमोक्ष रूप जो मोक्ष है, वह भी एकदेश शुद्ध-निश्चयनय से है; किन्तु शुद्ध-निश्चयनय से नहीं है। जो शुद्ध-द्रव्य की शक्ति रूप शुद्ध-पारिणामिक परमभाव रूप परमनिश्चय मोक्ष है, वह तो जीव में पहले ही विद्यमान है, वह परमनिश्चय मोक्ष जीव में अब होगी, ऐसा नहीं है। राग आदि विकल्पों से रहित मोक्ष का कारणभूत ध्यान-भावना-पर्याय में, वही परमनिश्चय मोक्ष ध्येय होता है, वह निश्चय मोक्ष ध्यान-भावना-पर्यायरूप नहीं है । यदि एकांत से द्रव्यार्थिक नय से भी उसी (परमनिश्चय मोक्ष) को मोक्ष का कारणभूत ध्यान-भावना-पर्याय कहा जाये, तो द्रव्य और पर्याय रूप दो धर्मों के आधारभूत जीव-धर्मी का, मोक्षपर्याय प्रकट होने पर, जैसे ध्यानभावना-पर्याय रूप से विनाश होता है, उसी प्रकार शुद्धपारिणामिक-भाव स्वरूप द्रव्य रूप से भी ध्येयभूत जीव का विनाश प्राप्त होगा; किन्तु द्रव्य रूप से जीव का विनाश नहीं
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