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४२ ] बृहद्रव्यसंग्रहः
[गाथा १४ केवलदर्शनम् । कस्मिंश्चित्स्वरूपचलनकारणे जाते सति घोरपरीषहोपसर्गादौ निजनिरञ्जनपरमात्मध्याने पूर्व यत् धैर्यमवलम्बितं तस्यैव फलभूतमनन्तपदार्थपरिच्छित्तिविषये खेदरहितत्वमनन्तवीर्यम् । सूक्ष्मातीन्द्रिय केवलज्ञानविषयत्वात्सिद्धस्वरूपस्य सूक्ष्मत्वं भएयते । एकदीपप्रकाशे नानादीपप्रकाशवदेकसिद्धक्षेत्रे सङ्करव्यतिकरदोषपरिहारेणानन्तसिद्धावकाशदानसामर्थ्यमवगाहनगुणो भण्यते । यदि सर्वथागुरुत्वं भवति तदा लोहपिण्डवदधःपतनं, यदि च सर्वथा लघुत्वं भवति तदा वाताहताकतूलवत्सर्वदैव भ्रमणमेव स्यान्न च तथा तस्मादगुरुलघुत्वगुणोऽभिधीयते । सहजशुद्धस्वरूपानुभवसमुत्पन्नरागादिविभावरहितसुखामृतस्य यदेकदेशसंवेदनं कृतं पूर्व तस्यैव फलभूतमव्यायाधमनन्तसुखं भएयते । इति मध्यमरुचिशिष्यापेक्षया सम्यक्त्वादिगुणाष्टकं भणितम् । विस्तररुचिशिष्यं प्रति पुनर्विशेषभेदनयेन निर्गतित्वं, निरिन्द्रियत्वं, निष्कायत्वं, निर्योगत्वं, निर्वेदत्वं, निष्कषायत्वं, निर्नामत्वं, निर्गोत्रत्वं, निरायुषत्वमित्यादिविशेषगुणास्तथैवास्तित्व
शुद्ध आत्मा की सत्ता का अवलोकन रूप जो दर्शन पहले भावित किया था उसी दर्शन के फलरूप एक काल में लोक अलोक के संपूर्ण पदार्थों के सामान्य को ग्रहण करने वाला "केवलदर्शन" गुण है । आत्मध्यान से विचलित करनेवाले किसी अतिघोर परिषह तथा उपसर्ग आदि के आने के समय जो पहले अपने निरंजन परमात्मा के ध्यान में धैर्य का अवलम्बन किया उसी के फलरूप अनन्त पदार्थों के जानने में खेद के अभावरूप "अनन्तवीर्य" गुण है । सूक्ष्मअतीन्द्रिय केवलज्ञानका विषय होने के कारण सिद्धों के स्वरूपको "सूक्ष्मत्व" कहते हैं। यह पांचवां गुण है । एक दीप के प्रकाश में जैसे अनेक दीपों का प्रकाश समा जाता है उसी तरह एक सिद्ध के क्षेत्र में संकर तथा व्यतिकर दोषसे रहित जो अनन्त सिद्धों को अवकाश देनेकी सामर्थ्य है वह “अवगाहन” गुण है । यदि सिद्धस्वरूप सर्वथा गुरु (भारी) हो तो लोहे के गोले के समान वह नीचे पड़ा रहेगा और यदि सर्वथा लघु (हलका) हो तो वायुसे प्रेरित आककी रुईकी तरह वह सदा इधर उधर घूमता रहेगा, किन्तु सिद्धोंका स्वरूप ऐसा नहीं है इस कारण उनके "अगुरुलघु" गुण कहा जाता है। स्वाभाविक शुद्ध
आत्मस्वरूप के अनुभव से उत्पन्न तथा राग आदि विभावों से रहित सुखरूपी अमृत का जो एकदेश अनुभव पहले किया था उसी के फलस्वरूप अव्याबाधरूप "अनन्त सुख" गुण सिद्धों में कहा गया है । इस प्रकार सम्यक्त्व अादि अाठ गुण मध्यमरुचि वाले शिष्यों के लिये हैं । विस्ताररुचि वाले शिष्य के प्रति विशेष भेद नय के अवलम्बन से गतिरहितता, इन्द्रियरहितता, शरीररहितता, योगरहितता, वेदरहितता, कषायरहितता, नामरहितता, गोत्ररहितता तथा आयुरहितता आदि विशेष गुण और इसी प्रकार अस्तित्व, वस्तुत्व, प्रमेयत्वादि सामान्य गुण इस तरह जैनागमके अनुसार अनन्त गुण जानने चाहिये । और संक्षेपरुचि शिष्य के लिये विवक्षित अभेद नयकी अपेक्षा अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त
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