________________
७४ ]
वृहद्र्व्यसंग्रह [क्षेपक गाथा १-२
चूलिका अतः परं पूर्वोक्तषड्व्याणां चूलिकारूपेण विस्तरव्याख्यानं क्रियते । तद्यथा
परिणामि जीव-मुत्तः, सपदेसं एय-खेत्त-किरिया य । णिच्चं कारण कत्ता, सव्वगदमिदरंहि यपवेसे ॥१॥ दुषिण य एवं एयं, पंच त्तिय एय दुरिण चउवरो य । पंच य एयं एयं, एदेसं एय उत्तवं णेयं ॥२॥ (युग्मम् ) व्याख्या-"परिणामि" इत्यादिव्याख्यानं क्रियते । “परिणाम"परि
मुनियों के रहने का स्थान एक है अथवा अनेक ? यदि दोनों का निवासक्षेत्र एक ही है तब तो दोनों एक हुए; परन्तु ऐसा है नहीं। यदि भिन्न मानों तो घट का आकाश तथा पट का आकाश की तरह विभागरहित आकाश द्रव्य की भी विभाग कल्पना सिद्ध हुई ।। २७॥
इस तरह पांच सूत्रों द्वारा पंच अस्तिकायों का निरूपण करने वाला तीसरा अन्तराधिकार समाप्त हुआ।
इस प्रकार श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्त देव विरचित द्रव्य संग्रह ग्रन्थ में नमस्कारादि २७ गाथाओं से तीन अन्तर अधिकारों द्वारा छह द्रव्य, पांच अस्तिकाय प्रतिपादन करने वाला प्रथम अधिकार समाप्त हुआ
चूलिका इसके अनन्तर अब छह द्रव्यों का उपसंहार रूप से विशेष व्याख्यान करते हैं:
गाथार्थ :-छह द्रव्यों में जीव और पुद्गल ये दो द्रव्य परिणामी हैं; चेतन द्रव्य एक जीव है, मूर्तिक एक पुद्गल है, प्रदेशसहित जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म तथा आकाश ये पांच द्रव्य हैं, एक-एक संख्या वाले धर्म, अधर्म और आकाश ये तीन द्रव्य हैं। क्षेत्रवान् एक आकाश द्रव्य है, क्रिया सहित जीव और पुद्गल ये दो द्रव्य हैं, नित्यद्रव्य-धर्म, अधर्म, आकाश तथा काल ये चार हैं, कारण द्रव्य-पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये पांच है, कर्ता-एक जीव द्रव्य है, सर्वगत (सर्व व्यापक) द्रव्य एक आकाश है (एक क्षेत्र अवगाह होने पर भी) इन छहों द्रव्य का परस्पर प्रवेश नहीं है। इस प्रकार छहों मूलद्रव्यों के उत्तर गुण जानने चाहियें ॥१॥२॥
वृत्त्यर्थ :-"परिणामि" इत्यादि गाथाओं का व्याख्यान करते हैं “परिणाम"
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org