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बृहद् द्रव्य संग्रहः
[ गाथा २७ तत्र परिहार : - स्निग्धरूक्षहेतुकस्य बन्धस्याभावान्न भवति । तदपि कस्मात् १ स्निग्धरूक्षत्वं पुद्गलस्यैव धर्मो यतः कारणादिति । अणुत्वं पुद्गलसंज्ञा, कालस्याणुसंज्ञा कथमिति चेत् १ तत्रोत्तरम् - अणुशब्देन व्यवहारेण पुद्गला उच्यन्ते निश्चयेन तु वर्णादिगुणानां पूरणगलनयोगात्पुद्गला इति वस्तुवृत्या पुनरगुशब्दः सूक्ष्मवाचकः । तद्यथा — परमेण प्रकर्षेणाणुः । अणुः कोऽर्थः सूक्ष्म, इति व्युत्पत्या परमाणुः । स च सूक्ष्मवाचकोऽणुशब्दो निर्विभागपुद्गल विवक्षायां पुद्गलाशुं वदति । अविभागिकालद्रव्यविवक्षायां तु कालाणुं कथयतीत्यर्थः | २६ |
अथ प्रदेशलक्षणमुपलक्षयति :--
जावदियं श्रायासं अविभागी पुग्गलाण उदृद्धं । तं खु पदेसं जाणे सन्त्रागुट्टा दाहिं ॥ २७ ॥
यावतिकं आकाश अविभागिपुद्गलाण्ववष्टब्धम् । तं खलु प्रदेशं जानीहि सर्व्वाणुस्थानदानार्हम् ॥ २७ ॥
रूक्ष गुण के कारण होने वाले बन्ध का कालद्रव्य में अभाव है इसलिये वह काय नहीं हो सकता । ऐसा भी क्यों ? क्योंकि स्निग्ध तथा रूक्षपना पुद्गल का ही धर्म है। काल में स्निग्ध रूक्ष नहीं है अतः उनके बिना बन्ध नहीं होता ।
कदाचित् यह पूछो कि 'अणु' यह तो पुद्गल की संज्ञा है, काल की 'अणु' संज्ञा कैसे हुई ? इसका उत्तर यह है कि- 'अणु' इस शब्द द्वारा व्यवहारनय से पुद्गल कहे जाते हैं और निश्चयनय से तो वर्ण आदि गुणों के पूरण तथा गलन के सम्बन्ध से पुद्गल कहे. जाते हैं; वास्तव में 'अणु' शब्द सूक्ष्म का वाचक है, जैसे परम अर्थात् अत्यन्त रूप से जो
हो सो 'परमाणु' है । अणु का क्या अर्थ है ? " सूक्ष्म" इस व्युत्पत्ति से परमाणु शब्द 'अतिसूक्ष्म' पदार्थ को कहता है और वह सूक्ष्मवाचक अणु शब्द निर्विभाग पुद्गल की विवक्षा ( कहने की इच्छा ) में पुद्गल अणु को कहता है और विभागी कालद्रव्य के कहने की जब इच्छा होती है तब 'काला' को कहता है ।। २६ ।।
अब प्रदेश का लक्षण कहते है :
:
गाथार्थ :–जितना आकाश परमाणुओं को स्थान देने में समर्थ प्रदेश जानो ॥ २७ ॥
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विभागी पुद्गलाणु से रोका जाता है उसको सब
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