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गाथा ३५ ] द्वितीयोऽधिकारः
[ १३५ भिधीयते । निश्चयकालस्तु तद्विमानगतिपरिणतेर्बहिरङ्गसहकारिकारणं भवति कुम्भकारचक्रभ्रमणस्याधस्तनशिलावदिति ।
इदानीमर्धतृतीयद्वीपेषु चन्द्रादित्यसंख्या कथ्यते । तथाहि-जम्बूद्वीपे चन्द्रद्वयं सूर्यद्वयं च, लवणोदे चतुष्टयं, धातकीखण्डद्वीपे द्वादश चन्द्रादित्याश्च, कालोदकसमुद्र द्विचत्वारिंशच्चन्द्रादित्याश्च, पुष्करार्धे द्वीपे द्वासप्ततिचन्द्रादित्याः चेति । ततः परं भरतैरावतस्थितजम्बूद्वीपचन्द्रसूर्ययोः किमपि विवरणं क्रियते । तद्यथा-जम्बूद्वीपाभ्यन्तरे योजनानामशीतिशतं बहिर्भागे लवणसमुद्रसम्बन्धे त्रिंशदधिकशतत्रयमिति समुदायेन दशोत्तरयोजनशतपञ्चकं चारक्षेत्रं भण्यते, तत् चन्द्रादित्ययोरेकमेव । तत्र भरतेन (सह) बहिर्भागे तस्मिंश्चारक्षेत्रे सूर्यस्य चतुरशीतिशतसंख्या मार्गा भवन्ति, चन्द्रस्य पञ्चदशैव । तत्र जम्बूद्वीपाभ्यन्तरे कर्कटसंक्रान्तिदिने दक्षिणायनप्रारम्भ निषधपर्वतस्योपरि प्रथममार्गे सूर्यः प्रथमोदयं करोति । यत्र सूर्यविमानस्थं निर्दोषपरमात्मनो जिनेश्वरस्याकृत्रिमं जिनविम्बम्
जाना जाता है; इस कारण उपचार से 'व्यवहार काल ज्योतिष्क देवों का किया हुआ है। ऐसा कहा जाता है । कुम्भकार के चाक के भ्रमण में बहिरंग सहकारी कारण नीचे की कीली के समान, निश्चय काल तो, उन ज्योतिष्क देवों के विमानों के गमन रूप परिणमन में, बहिरंग सहकारी कारण होता है ।
__ अब ढाई द्वीपों में जो चन्द्र और सूर्य हैं, उनकी संख्या बतलाते हैं। वह इस प्रकार है-जंबू द्वीप में दो चन्द्रमा और दो सूर्य हैं, लवणोदकसमुद्र में चार चन्द्रमा और चार सूर्य हैं, धातकीखंड द्वीप में बारह चन्द्रमा और बारह सूर्य है, कालोदक समुद्र में ४२ चन्द्रमा और ४२ सूर्य हैं तथा पुष्करार्ध द्वीप में ७२ चन्द्रमा और बहत्तर ही सूर्य हैं।
इसके अनंतर भरत और ऐरावत में स्थित जंबूद्वीप के चन्द्र-सूर्य का कुछ थोड़ा-सा विवरण कहते हैं। वह इस तरह है-जंबू द्वीप के भीतर एक सौ अस्सी और बाहरी भाग में अर्थात् लवणसमुद्र के तीन सौ तीस योजन, ऐसे दोनों मिलकर पांच सौ दस योजन प्रमाण सूर्य का चार क्षेत्र (गमन का क्षेत्र) कहलाता है। सो चन्द्र तथा सूर्य इन दोनों का एक ही गमन क्षेत्र है । भरत क्षेत्र और बाहरी भाग के चार क्षेत्र में सूर्य के एक सौ चौरासी मार्ग (गली) हैं और चन्द्रमा के पन्द्रह ही मार्ग हैं। उनमें जंबू द्वीप के भीतर कर्कट संक्रान्ति के दिन जब दक्षिणायन प्रारम्भ होता है, तब निषध पर्वत के ऊपर प्रथम मार्ग में सूर्य प्रथम उदय करता है। वहाँ पर सूर्य विमान में स्थित निर्दोष-परमात्म-जिनेन्द्र के अकृत्रिम जिनबिम्ब को, अयोध्या नगरी में स्थित भरत क्षेत्र का चक्रवर्ती प्रत्यक्ष देखकर
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