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वृहद्रव्यसंग्रह
[ गाथा ५५
पसंहाररूपेण पुनरप्याह । तत्र प्रथमपादे ध्येयलक्षणं, द्वितीयपादे ध्यातृलक्षणं, तृतीयपादे ध्यानलक्षणं चतुर्थपादे नयविभागं कथयामीत्यभिप्रायं मनसि धृत्वा भगवान् सूत्रमिदं प्रतिपादयति
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जं किंचिविचितं तो गिरीहवित्ती हवे जदा साहू |
लद्धू य एयचं तदाहु तं तस्स णिच्छियं ज्झाणं ॥ ५५ ॥
यत् किंचित् अपि चिन्तयन् निरीहवृत्तिः भवति यदा साधुः । लब्ध्वा च एकत्वं तदा आहुः तत् तस्य निश्चयं ध्यानम् ॥ ५५ ॥
व्याख्या – 'तदा' तस्मिन् काले । 'आहु' आहुर्बुवन्ति । 'तं तस्स बिच्छयं ज्झाणं' तत्तस्य निश्चयध्यानमिति । यदा किम् ? 'गिरीहवित्ती हवे जदा साहू ' निरीह वृत्तिर्निष्पृहवृत्तिर्यदा साधुर्भवति । किं कुर्वन् ? 'जं किंचिवि चिततो' यत् किमपि ध्येयं वस्तुरूपेण विचिन्तयन्निति । किं कृत्वा पूर्व ? 'लद्धय एयत्त" तस्मिन् ध्येये लब्ध्वा । किं ? एकत्वं एकाग्रचिन्तानिरोधनमिति । अथ विस्तरःयत् किञ्चिद् ध्येयमित्यनेन किमुक्त भवति १ प्राथमिकापेक्षया सविकल्पावस्थायां विषयकषायवञ्चनार्थं चित्त स्थिरीकरणार्थं पञ्चपरमेष्ठियादिपरद्रव्यमपि ध्येयं भवति ।
संक्षेपपूर्वक कहते हैं । 'गाथा के प्रथम पाद में ध्येय का लक्षण, द्वितीय पाद में ध्याता ( ध्यान करनेवाले) का लक्षण, तीसरे पाद में ध्यान का लक्षण और चौथे पाद में नयों के विभाग को कहता हूँ ।' इस अभिप्राय को मन में धारण करके भगवात् ( श्री नेमिचंद्र चार्य) सूत्र का प्रतिपादन करते हैं :
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गाथार्थ :—ध्येय में एकाग्रचित्त होकर जिस किसी पदार्थ का ध्यान करते हुए साधु जब निःपृह-वृत्ति ( समस्त इच्छारहित ) होते हैं तब उनका वह ध्यान निश्चयध्यान होता है | ५५ |
वृत्त्यर्थ :- ' तदा' उस काल में । 'आहु' कहते हैं । 'तं तस्स शिच्छयं उभारणं' उसको, उसका निश्चय ध्यान ( कहते हैं ) । जब क्या होता है । ? 'गिरीहवित्ती हवे जदा साहु' जब निस्पृह वृत्तिवाला साधु होता है । क्या करता है ? 'जं किंचिवि चितंतो' जिस किसी ध्येय वस्तु स्वरूप का विशेष चिन्तवन करता है । पहिले क्या करके ? 'लद्धूण य एयत्तं' उस ध्येय में प्राप्त होकर । क्या प्राप्त होकर ? एकपने को अर्थात् एकाग्र चिन्ता -निरोध को प्राप्त हो । (ध्येय पदार्थ में एकाग्र चिन्ता का निरोध करके यानी एकचित्त होकर, जिस किसी ध्येय वस्तु का चिन्तवन करता हुआ साधु जब निस्पृह वृत्तिवाला होता है, उस समय साधु के उस ध्यान को निश्चयध्यान कहते हैं ) । विस्तार से वर्णन - गाथा में 'यत् किंचित् ध्ययेम्' (जिस किसी भी ध्येय पदार्थ को ) इस पद से क्या कहा है ? प्रारम्भिक अवस्था की
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