Book Title: Bruhad Dravya Sangraha
Author(s): Bramhadev
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 230
________________ गाथा ५०] तृतीयोऽधिकारः [ २०६ विज्ञेयम् । अथवा द्वितीयमनुमानं कथ्यते-रामरावणादयः कालान्तरिता, मेदियो देशान्तरिता भूतादयो भवान्तरिताः परचेतोवृत्तयः परमाण्वादयश्व सूक्ष्मपदार्था धर्मिणः कस्यापि पुरुषविशेषस्य प्रत्यक्षा भवन्तीति साध्यो धर्म इति धर्मिधर्मसमुदायेन पक्षवचनम् । कस्मादिति चेत्, अनुमानविषयत्वादिति हेतुवचनम् ।किंवत्, यद्यदनुमानविषयं तत्तत्कस्यापि प्रत्यक्षं भवति, यथाग्न्यादि, इत्यन्वयदृष्टान्तवचनं । अनुमानेन विषयाश्चेति, इत्युपनयवचनम् । तस्मात् कस्यापि प्रत्यक्षा भवन्तीति निगमनवचनं। इदानीं व्यतिरेकदृष्टान्त: कथ्यते यन्न कस्यापि प्रत्यक्षं तदनुमानविषयमपि न भवति, यथा खपुष्पादि, इति व्यतिरेकदृष्टान्तवचनम् । अनुमानविषयाश्चेति पुनरप्युपनयवचनम् । तस्मात् प्रत्यक्षा भवन्तीति पुनरपि निगमनवचनमिति । किन्त्वनुमानविषयत्वादित्ययं हेतुः, सर्वज्ञस्वरूपे साध्ये सर्वप्रकारेण सम्भवति यतस्ततः कारणात्स्वरूपासिद्धभावासिद्धविशेषणादसिद्धो न भवति । तथैव सर्वज्ञस्वरूपं स्वपक्षं विहाय सर्वज्ञाऽभावं विपक्ष न साधयति तेन कारणेन विरुद्धो न धारक अनुमान जानना चाहिये। अथवा सर्गज्ञ के सद्भाव का साधक दूसरा अनुमान कहते हैं। राम और रावण आदि काल से दूर व ढके पदार्थ, मेरु आदि देश से अन्तरित पदार्थ, भूत आदि भव से ढके हुए पदार्थ, तथा पर पुरुषों के चित्तों के विकल्प और परमाणु आदि सूक्ष्म पदार्थ, ये धर्मी 'किसी भी विशेष-पुरुष के प्रत्यक्ष देखने में आते हैं', यह उन राम रावणादि धर्मियों में सिद्ध करने योग्य धर्म है। इस प्रकार धर्मी और धर्म के समुदाय से पक्षवचन (प्रतिज्ञा) है । राम रावणादि किसी के प्रत्यक्ष क्यों हैं ? 'अनुमान का विषय होने से यह हेतु-वचन है । किसके समान ? 'जो-जो अनुमान का विषय है, वह-वह किसी के प्रत्यक्ष होता है, जैसे-अग्नि आदि', यह अन्वय दृष्टान्त का वचन है। 'देश काल आदि से अन्तरित पदार्थ भी अनुमान के विषय हैं' यह उपनय का वचन है । इसलिये 'राम रावण आदि किसी के प्रत्यक्ष होते हैं। यह निगमन वाक्य है। अब व्यतिरेक दृष्टान्त को कहते हैं- 'जो किसी के भी प्रत्यक्ष नहीं होते वे अनुमान के विषय भी नहीं होते; जैसे कि प्रकाश के पुष्प आदि' यह व्यतिरेक दृष्टान्त का वचन है । 'राम रावण आदि अनुमान के विषय हैं। यह उपनय का वचन है । इसलिये 'राम रावणादि किसी के प्रत्यक्ष होते हैं। यह निगमन वाक्य है । 'राम रावणादि किसी के प्रत्यक्ष होते हैं, अनुमान के विषय होने से यहाँ पर 'अनुमान के विषय होने से' यह हेतु है । सर्वज्ञ रूप साध्य में यह हेतु सब तरह से सम्भव है; इस कारण यह हेतु स्वरूपासिद्ध, भावासिद्ध, इन विशेषणों से असिद्ध नहीं है । तथा उक्त हेतु, सर्वाज्ञ रूप अपने पक्ष को छोड़कर सर्वज्ञ के अभाव रूप विपक्ष को सिद्ध नहीं करता, इस कारण विरुद्ध भी नहीं है । और जैसे 'सर्गज्ञ के सद्भाव रूप अपने पक्ष में रहता १ 'विशेषणाद्यसिद्धो' इति पाठान्तरं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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